प्रमत्तसंयत: Difference between revisions
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
छठा गुणस्थान । इससे आगे चौदहवें गुणस्थान तक मनुष्यों में बाह्य रूप की अपेक्षा कोई भेद नहीं होता, सभी निर्ग्रन्थ मुद्रा के धारक होते हैं परन्तु आत्मिक विशुद्धि की अपेक्षा उनमें भेद होता है । जैसे-जैसे ऊपर बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे उनमें विशुद्धि बढ़ती जाती है । ऐसे जीव शान्त और पंच-पापों से रहित होते हैं । हरिवंशपुराण 3.81-84, 89-90