भामण्डल: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । यह भगवान् के दिव्य औदारिक शरीर से उत्पन्न होता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 15, 12-13, 19</p> | <p id="1"> (1) अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । यह भगवान् के दिव्य औदारिक शरीर से उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 15, 12-13, 19 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा जनक और रानी विदेहा का सीता के साथ (युगल संतान के रूप में) उत्पन्न पुत्र । पूर्वभव के बेरी महाकाल असुर ने इसे जन्म लेते ही मारने के लिए विदेहा के पास से अपहरण किया था । पश्चात् विचारों में परिवर्तन आने से उसने दयार्द्र होकर इसे मारने का विचार त्यागा तथा इसे दैदीप्यमान किरणों वाले कुण्डल पहिना कर और | <p id="2">(2) राजा जनक और रानी विदेहा का सीता के साथ (युगल संतान के रूप में) उत्पन्न पुत्र । पूर्वभव के बेरी महाकाल असुर ने इसे जन्म लेते ही मारने के लिए विदेहा के पास से अपहरण किया था । पश्चात् विचारों में परिवर्तन आने से उसने दयार्द्र होकर इसे मारने का विचार त्यागा तथा इसे दैदीप्यमान किरणों वाले कुण्डल पहिना कर और पर्णलब्धी-विद्या का इसने प्रवेश कराकर आकाश से सुखकर स्थान में छोड़ दिया था । आकाश से इसे गिरते हुए देखकर विद्याधर चन्द्रगति ने बीच में ही रोक लिया था और रथनूपुर ले जाकर नगर में इसका जन्मोत्सव मनाया था । कुण्डलों के किरण समूह से घिरे हुए होने से उसने इसका ‘‘भामण्डल’’ नाम रखा था । यह सीता पर मुग्ध था । सीता को भामण्डल की पत्नी बनाने के लिए चंद्रगति ने चपलवेग विद्याधर को भेजकर जनक को रथनूपुर बुलाया था और उनमें सीता की याचना को थी किन्तु जनक ने अपने निश्चय के अनुसार सीता देने को स्वीकृति नहीं दी । यह सीता को पाने के लिए उसके स्वयंवर में भी गया था किन्तु विदग्ध देश में अपने पूर्वभव के मनोहर नगर को देखते ही इसे जाति-स्मरण हुआ था । सचेत होने पर इसने अत्यन्त पश्चाताप भी किया । पश्चात् सीता एवं परिजनों से मिलकर और मिथिला का राज्य कनक के लिए सौंपकर तथा माता-पिता को साथ लेकर यह अपने नगर लौट आया । इसका दूसरा नाम प्रभामण्डल था युद्ध में मेघवाहन के नाग बाणों से छिदकर यह भूमि पर गिर गया था । लक्ष्मण की शक्ति दूर करने के लिए विशल्या को लेने यही गया था । लंका की विजय के बाद राम ने इसे रथनूपुर का राजा बनाया था । भोग-भोगते हुए इसके सैकड़ों वर्ष निकल गये किन्तु यह दीक्षित न हो सका था । अचानक महल की सातवीं मंजिल के ऊपर मस्तिष्क पर वज्रपात होने से इसकी मृत्यु हुई । इसने और इसकी पत्नी मालिनी दोनों ने मिलकर वज्रांक और उसके अशोक तथा तिलक दोनों पुत्रों को मुनि अवस्था में आहार कराया था । इस दान के प्रभाव से मरकर यह मेरु पर्वत के दक्षिण में विद्यमान देवकुरु भोगभूमि में तीन पल्य की आयु का धारी आर्य (भोगभूमिज) हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 26.2, 121-148, 28.22, 117-125, 30-29-38, 167-169, 54.37, 60.98-103, 64.32, 88-41, 111.1-14, 123. 86-105 </span></p> | ||
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
(1) अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । यह भगवान् के दिव्य औदारिक शरीर से उत्पन्न होता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 15, 12-13, 19
(2) राजा जनक और रानी विदेहा का सीता के साथ (युगल संतान के रूप में) उत्पन्न पुत्र । पूर्वभव के बेरी महाकाल असुर ने इसे जन्म लेते ही मारने के लिए विदेहा के पास से अपहरण किया था । पश्चात् विचारों में परिवर्तन आने से उसने दयार्द्र होकर इसे मारने का विचार त्यागा तथा इसे दैदीप्यमान किरणों वाले कुण्डल पहिना कर और पर्णलब्धी-विद्या का इसने प्रवेश कराकर आकाश से सुखकर स्थान में छोड़ दिया था । आकाश से इसे गिरते हुए देखकर विद्याधर चन्द्रगति ने बीच में ही रोक लिया था और रथनूपुर ले जाकर नगर में इसका जन्मोत्सव मनाया था । कुण्डलों के किरण समूह से घिरे हुए होने से उसने इसका ‘‘भामण्डल’’ नाम रखा था । यह सीता पर मुग्ध था । सीता को भामण्डल की पत्नी बनाने के लिए चंद्रगति ने चपलवेग विद्याधर को भेजकर जनक को रथनूपुर बुलाया था और उनमें सीता की याचना को थी किन्तु जनक ने अपने निश्चय के अनुसार सीता देने को स्वीकृति नहीं दी । यह सीता को पाने के लिए उसके स्वयंवर में भी गया था किन्तु विदग्ध देश में अपने पूर्वभव के मनोहर नगर को देखते ही इसे जाति-स्मरण हुआ था । सचेत होने पर इसने अत्यन्त पश्चाताप भी किया । पश्चात् सीता एवं परिजनों से मिलकर और मिथिला का राज्य कनक के लिए सौंपकर तथा माता-पिता को साथ लेकर यह अपने नगर लौट आया । इसका दूसरा नाम प्रभामण्डल था युद्ध में मेघवाहन के नाग बाणों से छिदकर यह भूमि पर गिर गया था । लक्ष्मण की शक्ति दूर करने के लिए विशल्या को लेने यही गया था । लंका की विजय के बाद राम ने इसे रथनूपुर का राजा बनाया था । भोग-भोगते हुए इसके सैकड़ों वर्ष निकल गये किन्तु यह दीक्षित न हो सका था । अचानक महल की सातवीं मंजिल के ऊपर मस्तिष्क पर वज्रपात होने से इसकी मृत्यु हुई । इसने और इसकी पत्नी मालिनी दोनों ने मिलकर वज्रांक और उसके अशोक तथा तिलक दोनों पुत्रों को मुनि अवस्था में आहार कराया था । इस दान के प्रभाव से मरकर यह मेरु पर्वत के दक्षिण में विद्यमान देवकुरु भोगभूमि में तीन पल्य की आयु का धारी आर्य (भोगभूमिज) हुआ । पद्मपुराण 26.2, 121-148, 28.22, 117-125, 30-29-38, 167-169, 54.37, 60.98-103, 64.32, 88-41, 111.1-14, 123. 86-105