मानसस्तंभ: Difference between revisions
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<p> समवसरण-रचना में धूलिसाल के भीतर गलियों के बीच में चारों दिशाओं में इन्द्र द्वारा स्वर्ण से निर्मित चार उन्नत स्तम्भ । इनके ऊपरी भाग में चारों ओर मुख किये चार प्रतिमाएँ विराजमान रहती है । जिस जगती पर इनकी रचना होती है, वह चार-चार गोपुर द्वारों से युक्त तीन कोटों से वेष्टित रहती है । उसके बीच में एक में एक पीठिका बनायी जाती है । पीठिका के ऊपर चढ़ने के लिए सोलह सीढ़ियाँ रहती है । ये ऊँचाई के कारण दूर से दिखाई देते हैं । इन्हें देखते ही मिथ्यादृष्टियों का मान-भंग हो जाता है । ये घण्टा, चमर और ध्वजाओं से सुशोभित होते हैं । कमलों से आच्छादित जल से भरी बावड़ियां इनके समीप ही होती है । इनकी इन्द्र द्वारा रचना की जाने से | <p> समवसरण-रचना में धूलिसाल के भीतर गलियों के बीच में चारों दिशाओं में इन्द्र द्वारा स्वर्ण से निर्मित चार उन्नत स्तम्भ । इनके ऊपरी भाग में चारों ओर मुख किये चार प्रतिमाएँ विराजमान रहती है । जिस जगती पर इनकी रचना होती है, वह चार-चार गोपुर द्वारों से युक्त तीन कोटों से वेष्टित रहती है । उसके बीच में एक में एक पीठिका बनायी जाती है । पीठिका के ऊपर चढ़ने के लिए सोलह सीढ़ियाँ रहती है । ये ऊँचाई के कारण दूर से दिखाई देते हैं । इन्हें देखते ही मिथ्यादृष्टियों का मान-भंग हो जाता है । ये घण्टा, चमर और ध्वजाओं से सुशोभित होते हैं । कमलों से आच्छादित जल से भरी बावड़ियां इनके समीप ही होती है । इनकी इन्द्र द्वारा रचना की जाने से इन्हें इन्द्रध्वज भी कहा जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 22.92-103, 25.237, 62.282, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.79-80 </span></p> | ||
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Revision as of 21:45, 5 July 2020
समवसरण-रचना में धूलिसाल के भीतर गलियों के बीच में चारों दिशाओं में इन्द्र द्वारा स्वर्ण से निर्मित चार उन्नत स्तम्भ । इनके ऊपरी भाग में चारों ओर मुख किये चार प्रतिमाएँ विराजमान रहती है । जिस जगती पर इनकी रचना होती है, वह चार-चार गोपुर द्वारों से युक्त तीन कोटों से वेष्टित रहती है । उसके बीच में एक में एक पीठिका बनायी जाती है । पीठिका के ऊपर चढ़ने के लिए सोलह सीढ़ियाँ रहती है । ये ऊँचाई के कारण दूर से दिखाई देते हैं । इन्हें देखते ही मिथ्यादृष्टियों का मान-भंग हो जाता है । ये घण्टा, चमर और ध्वजाओं से सुशोभित होते हैं । कमलों से आच्छादित जल से भरी बावड़ियां इनके समीप ही होती है । इनकी इन्द्र द्वारा रचना की जाने से इन्हें इन्द्रध्वज भी कहा जाता है । महापुराण 22.92-103, 25.237, 62.282, वीरवर्द्धमान चरित्र 14.79-80