मौनाध्ययनवृत्तत्व: Difference between revisions
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<p> गर्भाधान से निर्वाण पर्यन्त गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में पैंतीसवीं क्रिया । दीक्षा लेकर उपवास के बाद पारणा करके साधु का शास्त्र समाप्ति पर्यन्त मौनपूर्वक अध्ययन करना मौनाध्ययनवृत्तत्व कहलाता है । इसमें मौनी, विनीत, मन-वचन-काय से शुद्ध साधु को गुरु के समीप शास्त्रों का अध्ययन करना होता है । इससे इस लोक में योग्यता की वृद्धि तथा परलोक में सुख की प्राप्ति होती है । महापुराण 38.58, 63, 161-163</p> | <p> गर्भाधान से निर्वाण पर्यन्त गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में पैंतीसवीं क्रिया । दीक्षा लेकर उपवास के बाद पारणा करके साधु का शास्त्र समाप्ति पर्यन्त मौनपूर्वक अध्ययन करना मौनाध्ययनवृत्तत्व कहलाता है । इसमें मौनी, विनीत, मन-वचन-काय से शुद्ध साधु को गुरु के समीप शास्त्रों का अध्ययन करना होता है । इससे इस लोक में योग्यता की वृद्धि तथा परलोक में सुख की प्राप्ति होती है । <span class="GRef"> महापुराण 38.58, 63, 161-163 </span></p> | ||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
गर्भाधान से निर्वाण पर्यन्त गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में पैंतीसवीं क्रिया । दीक्षा लेकर उपवास के बाद पारणा करके साधु का शास्त्र समाप्ति पर्यन्त मौनपूर्वक अध्ययन करना मौनाध्ययनवृत्तत्व कहलाता है । इसमें मौनी, विनीत, मन-वचन-काय से शुद्ध साधु को गुरु के समीप शास्त्रों का अध्ययन करना होता है । इससे इस लोक में योग्यता की वृद्धि तथा परलोक में सुख की प्राप्ति होती है । महापुराण 38.58, 63, 161-163