भावपाहुड गाथा 76: Difference between revisions
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भावं तिविहपयारं सुहासुहं सुद्धमेव णायव्वं ।<br> | |||
असुहं च अट्टरउद्दं सुह धम्मं जिणवरिंदेहिं ।।७६।।<br> | |||
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भाव: त्रिविधप्रकार: शुभोsशुभ: शुद्ध: एव ज्ञातव्य: ।<br> | |||
अशुभश्च आर्त्तरौद्र शुभ: धर्म्यं जिनवरेन्द्रै: ।।७६।।<br> | |||
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शुभ अशुभ एवं शुद्ध इसविधि भाव तीन प्रकार के ।<br> | |||
रौद्रार्त तो हैं अशुभ किन्तु शुभ धरममय ध्यान है ।।७६।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> जिनवरदेव ने भाव तीन प्रकार का कहा है - १. शुभ, २. अशुभ और ३. शुद्ध । आर्त और रौद्र ये अशुभ ध्यान हैं तथा धर्मध्यान शुभ है ।।७६।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:52, 14 December 2008
आगे भावों के भेद कहते हैं -
भावं तिविहपयारं सुहासुहं सुद्धमेव णायव्वं ।
असुहं च अट्टरउद्दं सुह धम्मं जिणवरिंदेहिं ।।७६।।
भाव: त्रिविधप्रकार: शुभोsशुभ: शुद्ध: एव ज्ञातव्य: ।
अशुभश्च आर्त्तरौद्र शुभ: धर्म्यं जिनवरेन्द्रै: ।।७६।।
शुभ अशुभ एवं शुद्ध इसविधि भाव तीन प्रकार के ।
रौद्रार्त तो हैं अशुभ किन्तु शुभ धरममय ध्यान है ।।७६।।
अर्थ - जिनवरदेव ने भाव तीन प्रकार का कहा है - १. शुभ, २. अशुभ और ३. शुद्ध । आर्त और रौद्र ये अशुभ ध्यान हैं तथा धर्मध्यान शुभ है ।।७६।।