भावपाहुड गाथा 91: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: ऐसा करने से क्या होता है ? सो कहते हैं -<br> <p class="PrakritGatha"> पीऊण णाणसलिलं णिम्महति...) |
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णवणोकसायवग्गं मिच्छत्तं चयसु भावसुद्धीए ।<br> | |||
चेइयपवयणगुरुणं करेहि भत्तिं जिणाणाए ।।९१।।<br> | |||
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नवनोकषायवर्गं मिथ्यात्वं त्यज भावशुद्धया ।<br> | |||
चैत्यप्रवचनगुरूणां कुरु भक्तिं जिनाज्ञया ।।९१।।<br> | |||
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मिथ्यात्व अर नोकषायों को तजो शुद्ध स्वभाव से ।<br> | |||
देव प्रवचन गुरु की भक्ति करो आदेश यह ।।९१।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> हे मुने ! तू नव जो हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद ये नो कषायवर्ग तथा मिथ्यात्व इनको भावशुद्धि द्वारा छोड़ और जिन-आज्ञा से चैत्य, प्रवचन, गुरु इनकी भक्ति कर ।।९१।।<br> | ||
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Latest revision as of 11:04, 14 December 2008
आगे फिर उपदेश कहते हैं -
णवणोकसायवग्गं मिच्छत्तं चयसु भावसुद्धीए ।
चेइयपवयणगुरुणं करेहि भत्तिं जिणाणाए ।।९१।।
नवनोकषायवर्गं मिथ्यात्वं त्यज भावशुद्धया ।
चैत्यप्रवचनगुरूणां कुरु भक्तिं जिनाज्ञया ।।९१।।
मिथ्यात्व अर नोकषायों को तजो शुद्ध स्वभाव से ।
देव प्रवचन गुरु की भक्ति करो आदेश यह ।।९१।।
अर्थ - हे मुने ! तू नव जो हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद ये नो कषायवर्ग तथा मिथ्यात्व इनको भावशुद्धि द्वारा छोड़ और जिन-आज्ञा से चैत्य, प्रवचन, गुरु इनकी भक्ति कर ।।९१।।