वातसल्य: Difference between revisions
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<p> साधर्मी जनों के प्रति प्रेम-भाव । यह सम्यग्दर्शन का एक अंग तथा सोलहकारण भावनाओं में एक भावना है । महापुराण 63.320-330, 330, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.69</p> | <p> साधर्मी जनों के प्रति प्रेम-भाव । यह सम्यग्दर्शन का एक अंग तथा सोलहकारण भावनाओं में एक भावना है । <span class="GRef"> महापुराण 63.320-330, 330, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.69 </span></p> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
साधर्मी जनों के प्रति प्रेम-भाव । यह सम्यग्दर्शन का एक अंग तथा सोलहकारण भावनाओं में एक भावना है । महापुराण 63.320-330, 330, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.69