भावपाहुड गाथा 104: Difference between revisions
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विणयं पंचपयारं पालहि मणवयकायजोएण ।<br> | |||
अविणयणरा सुविहियं तत्तो मुत्तिं न पावंति ।।१०४।।<br> | |||
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अविनतनरा: सुविहितां ततो मुक्तिं न प्राप्नुवंति ।।१०४।।<br> | |||
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विनय पंच प्रकार पालो मन वचन अर काय से ।<br> | |||
अविनयी को मुक्ति की प्राप्ति कभी होती नहीं ।।१०४।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> हे मुने ! जो | <p><b> अर्थ - </b> हे मुने ! जिस कारण से अविनयी मनुष्य भले प्रकार विहित जो मुक्ति उसको नहीं पाते हैं अर्थात् अभ्युदय तीर्थंकरादि सहित मुक्ति नहीं पाते हैं, इसलिए हम उपदेश करते हैं कि हाथ जोड़ना, चरणों में गिरना, आने पर उठना, सामने जाना और अनुकूल वचन कहना यह पाँच प्रकार का विनय है अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और इनके धारक पुरुष इनका विनय करना ऐसे पाँचप्रकार के विनय को तू मन वचन काय तीनों योगों से पालन कर । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> विनय बिना मुक्ति नहीं है, इसलिए विनय का उपदेश है । विनय में बड़े गुण हैं, ज्ञान की प्राप्ति होती है, मानकषाय का नाश होता है, शिष्टाचार का पालना है और कलह का निवारण है इत्यादि विनय के गुण जानने । इसलिए जो सम्यग्दर्शनादि से महान् हैं, उनका विनय करो यह उपदेश है और जो विनय बिना जिनमार्ग से भ्रष्ट भये, वस्त्रादिकसहित जो मोक्षमार्ग मानने लगे उनका निषेध है ।।१०४।।<br> | ||
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Latest revision as of 11:14, 14 December 2008
आगे विनय आदि का उपदेश करते हैं, पहिले विनय का वर्णन है -
विणयं पंचपयारं पालहि मणवयकायजोएण ।
अविणयणरा सुविहियं तत्तो मुत्तिं न पावंति ।।१०४।।
विनय: पंचप्रकारं पालय मनोवचनकाययोगेन ।
अविनतनरा: सुविहितां ततो मुक्तिं न प्राप्नुवंति ।।१०४।।
विनय पंच प्रकार पालो मन वचन अर काय से ।
अविनयी को मुक्ति की प्राप्ति कभी होती नहीं ।।१०४।।
अर्थ - हे मुने ! जिस कारण से अविनयी मनुष्य भले प्रकार विहित जो मुक्ति उसको नहीं पाते हैं अर्थात् अभ्युदय तीर्थंकरादि सहित मुक्ति नहीं पाते हैं, इसलिए हम उपदेश करते हैं कि हाथ जोड़ना, चरणों में गिरना, आने पर उठना, सामने जाना और अनुकूल वचन कहना यह पाँच प्रकार का विनय है अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और इनके धारक पुरुष इनका विनय करना ऐसे पाँचप्रकार के विनय को तू मन वचन काय तीनों योगों से पालन कर ।
भावार्थ - विनय बिना मुक्ति नहीं है, इसलिए विनय का उपदेश है । विनय में बड़े गुण हैं, ज्ञान की प्राप्ति होती है, मानकषाय का नाश होता है, शिष्टाचार का पालना है और कलह का निवारण है इत्यादि विनय के गुण जानने । इसलिए जो सम्यग्दर्शनादि से महान् हैं, उनका विनय करो यह उपदेश है और जो विनय बिना जिनमार्ग से भ्रष्ट भये, वस्त्रादिकसहित जो मोक्षमार्ग मानने लगे उनका निषेध है ।।१०४।।