विभंग-विबोध: Difference between revisions
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<p> मिथ्या अवधिज्ञान । नारकियों को पर्याप्तक होते ही यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है । यही कारण है कि वे पूर्वभव के वैर विरोध का स्मरण कर लेते हैं । उन्हें नरक के दुःख भोगने के कारण भी इससे याद आ जाते हैं । कमठ के जीव शम्बर असुर ने इसी ज्ञान से अपने पूर्वभव का वैर जाना था और उसने तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ पर अनेक उपसर्ग किये थे । महापुराण 10.103, 46.249, 73. 137-138, वीरवर्द्धमान चरित्र 3.120-128</p> | <p> मिथ्या अवधिज्ञान । नारकियों को पर्याप्तक होते ही यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है । यही कारण है कि वे पूर्वभव के वैर विरोध का स्मरण कर लेते हैं । उन्हें नरक के दुःख भोगने के कारण भी इससे याद आ जाते हैं । कमठ के जीव शम्बर असुर ने इसी ज्ञान से अपने पूर्वभव का वैर जाना था और उसने तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ पर अनेक उपसर्ग किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 10.103, 46.249, 73. 137-138, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.120-128 </span></p> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
मिथ्या अवधिज्ञान । नारकियों को पर्याप्तक होते ही यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है । यही कारण है कि वे पूर्वभव के वैर विरोध का स्मरण कर लेते हैं । उन्हें नरक के दुःख भोगने के कारण भी इससे याद आ जाते हैं । कमठ के जीव शम्बर असुर ने इसी ज्ञान से अपने पूर्वभव का वैर जाना था और उसने तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ पर अनेक उपसर्ग किये थे । महापुराण 10.103, 46.249, 73. 137-138, वीरवर्द्धमान चरित्र 3.120-128