भावपाहुड गाथा 123: Difference between revisions
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तह रायाणिलरहिओ झाणपईवो वि पज्जलइ ।।१२३।।<br> | |||
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यथा दीप: गर्भगृहे मारुतबाधाविवर्जित: ज्वलति ।<br> | |||
तथा रागानिलरहित: ध्यानप्रदीप: अपि प्रज्वलति ।।१२३।।<br> | |||
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ज्यों गर्भगृह में दीप जलता पवन से निर्बाध हो ।<br> | |||
त्यों जले निज में ध्यान दीपक राग से निर्बाध हो ।।१२३।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> जैसे दीपक गर्भगृह अर्थात् जहाँ पवन का संचार नहीं है, ऐसे घर के मध्य मेंे पवन की बाधा रहित निश्चल होकर जलता है (प्रकाश करता है), वैसे ही अंतरंग मन में रागरूपी पवन से रहित ध्यानरूपी दीपक भी जलता है, एकाग्र होकर ठहरता है, आत्मरूप को प्रकाशित करता है । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> पहिले कहा था कि जो इन्द्रियसुख से व्याकुल हैं, उनके शुभध्यान नहीं होता है, उसका यह दीपक का दृष्टान्त है, जहाँ इन्द्रियों के सुख में जो राग, वह ही हुआ पवन, वह विद्यमान है, उनके ध्यानरूपी दीपक कैसे निर्बाध उद्योत करे ? अर्थात् न करे और जिनके यह रागरूपी पवन बाधा न करे उनके ध्यानरूपी दीपक निश्चल ठहरता है ।।१२३।।<br> | ||
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Latest revision as of 11:29, 14 December 2008
आगे इस ही अर्थ को दृष्टान्त द्वारा दृढ़ करते हैं -
जह दीवो गब्भहरे मारुयबाहाविवज्जिओ जलइ ।
तह रायाणिलरहिओ झाणपईवो वि पज्जलइ ।।१२३।।
यथा दीप: गर्भगृहे मारुतबाधाविवर्जित: ज्वलति ।
तथा रागानिलरहित: ध्यानप्रदीप: अपि प्रज्वलति ।।१२३।।
ज्यों गर्भगृह में दीप जलता पवन से निर्बाध हो ।
त्यों जले निज में ध्यान दीपक राग से निर्बाध हो ।।१२३।।
अर्थ - जैसे दीपक गर्भगृह अर्थात् जहाँ पवन का संचार नहीं है, ऐसे घर के मध्य मेंे पवन की बाधा रहित निश्चल होकर जलता है (प्रकाश करता है), वैसे ही अंतरंग मन में रागरूपी पवन से रहित ध्यानरूपी दीपक भी जलता है, एकाग्र होकर ठहरता है, आत्मरूप को प्रकाशित करता है ।
भावार्थ - पहिले कहा था कि जो इन्द्रियसुख से व्याकुल हैं, उनके शुभध्यान नहीं होता है, उसका यह दीपक का दृष्टान्त है, जहाँ इन्द्रियों के सुख में जो राग, वह ही हुआ पवन, वह विद्यमान है, उनके ध्यानरूपी दीपक कैसे निर्बाध उद्योत करे ? अर्थात् न करे और जिनके यह रागरूपी पवन बाधा न करे उनके ध्यानरूपी दीपक निश्चल ठहरता है ।।१२३।।