वेदवती: Difference between revisions
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<p> मृणालकुण्ड नगर के श्रीभूति पुरोहित और उसकी स्त्री सरस्वती की पुत्री । इसी नगर के राजकुमार शम्भु ने इसके पिता को मारकर बलपूर्वक इसके साथ कामसेवन किया था । | <p> मृणालकुण्ड नगर के श्रीभूति पुरोहित और उसकी स्त्री सरस्वती की पुत्री । इसी नगर के राजकुमार शम्भु ने इसके पिता को मारकर बलपूर्वक इसके साथ कामसेवन किया था । शम्भु को इस कुचेष्टा के कारण इसने आगामी पर्याय में वास्तु के वध के लिए उत्पन्न होने का निदान किया था । घर आये मुनि की हँसी करने पर पिता के समझाने से यह श्राविका हो गयी थी । आयु के अन्त में आर्यिका हरिकान्ता से दीक्षा लेकर इसने कठिन तप किया तथा मरकर यह ब्रह्म स्वर्ग गई । शम्भु नरक गया और वहाँ से निकल कर तिर्यंचगति में भ्रमण करने के पश्चात् प्रभासकुन्द हुआ और तप कर स्वर्ग गया । वही से चयकर वह लंका में राजा रत्नश्रवा और कैकसी का पुत्र रावण हुआ । वेदवती स्वर्ग से चयकर राजा जनक की पुत्री सीता हुई । यही सीता अपने पूर्वभव में किये निदान के अनुसार रावण के क्षय का कारण बनी । इसने इस पर्याय में मुनि सुदर्शन और आर्यिका सुदर्शना दोनों भाई-बहिन को एकान्त में बातचीत करते हुए देखकर अवर्णवाद किया था इसी के फलस्वरूप सीता की पर्याय में इसका भी अवर्णवाद हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106.135-178, 208, 225-231 </span></p> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
मृणालकुण्ड नगर के श्रीभूति पुरोहित और उसकी स्त्री सरस्वती की पुत्री । इसी नगर के राजकुमार शम्भु ने इसके पिता को मारकर बलपूर्वक इसके साथ कामसेवन किया था । शम्भु को इस कुचेष्टा के कारण इसने आगामी पर्याय में वास्तु के वध के लिए उत्पन्न होने का निदान किया था । घर आये मुनि की हँसी करने पर पिता के समझाने से यह श्राविका हो गयी थी । आयु के अन्त में आर्यिका हरिकान्ता से दीक्षा लेकर इसने कठिन तप किया तथा मरकर यह ब्रह्म स्वर्ग गई । शम्भु नरक गया और वहाँ से निकल कर तिर्यंचगति में भ्रमण करने के पश्चात् प्रभासकुन्द हुआ और तप कर स्वर्ग गया । वही से चयकर वह लंका में राजा रत्नश्रवा और कैकसी का पुत्र रावण हुआ । वेदवती स्वर्ग से चयकर राजा जनक की पुत्री सीता हुई । यही सीता अपने पूर्वभव में किये निदान के अनुसार रावण के क्षय का कारण बनी । इसने इस पर्याय में मुनि सुदर्शन और आर्यिका सुदर्शना दोनों भाई-बहिन को एकान्त में बातचीत करते हुए देखकर अवर्णवाद किया था इसी के फलस्वरूप सीता की पर्याय में इसका भी अवर्णवाद हुआ । पद्मपुराण 106.135-178, 208, 225-231