भावपाहुड गाथा 160: Difference between revisions
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सद्गुणों की मणिमाल जिनमत गगन में मुनि निशाकर ।<br> | |||
तारावली परिवेष्ठित हैं शोभते पूर्णेन्दु सम ।।१६०।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> जैसे पवनपथ (आकाश) में ताराओं की पंक्ति के परिवार से वेष्टित पूर्णिा का चन्द्रमा शोभा पाता है, वैसे ही जिनमत रूप आकाश में गुणों के समूहरूपी मणियों की माला से मुनीन्द्ररूप चन्द्रमा शोभा पाता है । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> अट्ठाईस मूलगुण, दशलक्षण धर्म, तीन गुप्ति और चौरासी लाख उत्तरगुणों की मालासहित मुनि जिनमत में चन्द्रमा के समान शोभा पाता है, ऐसे मुनि अन्यमत में नहीं हैं ।।१६०।।<br> | |||
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Latest revision as of 11:59, 14 December 2008
आगे कहते हैं कि जो इसप्रकार मूलगुण और उत्तरगुणों से मंडित मुनि हैं वे जिनमत में शोभा पाते हैं -
गुणगणमणिमालाए जिणमयगयणे णिसायरमुणिंदो ।
तारावलिपरियरिओ पुण्णिमइं दुव्व पवणपहे ।।१६०।।
गुणगणमणिमालया जिनमतगगने निशाकरमुनींद्र: ।
तारावलीपरिकरित: पूर्णिेन्दुरिव पवनपथे ।।१६०।।
सद्गुणों की मणिमाल जिनमत गगन में मुनि निशाकर ।
तारावली परिवेष्ठित हैं शोभते पूर्णेन्दु सम ।।१६०।।
अर्थ - जैसे पवनपथ (आकाश) में ताराओं की पंक्ति के परिवार से वेष्टित पूर्णिा का चन्द्रमा शोभा पाता है, वैसे ही जिनमत रूप आकाश में गुणों के समूहरूपी मणियों की माला से मुनीन्द्ररूप चन्द्रमा शोभा पाता है ।
भावार्थ - अट्ठाईस मूलगुण, दशलक्षण धर्म, तीन गुप्ति और चौरासी लाख उत्तरगुणों की मालासहित मुनि जिनमत में चन्द्रमा के समान शोभा पाता है, ऐसे मुनि अन्यमत में नहीं हैं ।।१६०।।