सभा: Difference between revisions
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<p> सत्ताईस सूत्रपदों में इक्कीसवां सूत्रपद । जो मुनि अपने इष्ट सेवक तथा भाई की सभा का परित्याग करता है वह अर्हन्त पद की प्राप्ति होने पर तीन लोक की सभा-समवसरण भूमि में विराजमान होता है । महापुराण 39.165, 190</p> | <p> सत्ताईस सूत्रपदों में इक्कीसवां सूत्रपद । जो मुनि अपने इष्ट सेवक तथा भाई की सभा का परित्याग करता है वह अर्हन्त पद की प्राप्ति होने पर तीन लोक की सभा-समवसरण भूमि में विराजमान होता है । <span class="GRef"> महापुराण 39.165, 190 </span></p> | ||
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Revision as of 21:48, 5 July 2020
सत्ताईस सूत्रपदों में इक्कीसवां सूत्रपद । जो मुनि अपने इष्ट सेवक तथा भाई की सभा का परित्याग करता है वह अर्हन्त पद की प्राप्ति होने पर तीन लोक की सभा-समवसरण भूमि में विराजमान होता है । महापुराण 39.165, 190