सागरदत्त: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) चौथे नारायण के पूर्वभव का नाम । पद्मपुराण 20.210 </p> | <p id="1"> (1) चौथे नारायण के पूर्वभव का नाम । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.210 </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2">(2) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित एकक्षेत्र नगर का एक वैश्य । इसकी स्त्री रत्नप्रभा थी । इन दोनों की गुणवती नाम की पुत्री थी, जो सीता का जीव थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106.12 </span></p> | ||
<p id="3">(3) विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी के निवासी सेठ सागरसेन का बड़ा पुत्र । यह समुद्रदत्त का बड़ा भाई था । इसकी बहिन सागरदत्ता थी । इसे सागरसेन की भानजी वैश्रवणदत्ता विवाही गयी थी । महापुराण 47.191-199</p> | <p id="3">(3) विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी के निवासी सेठ सागरसेन का बड़ा पुत्र । यह समुद्रदत्त का बड़ा भाई था । इसकी बहिन सागरदत्ता थी । इसे सागरसेन की भानजी वैश्रवणदत्ता विवाही गयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 47.191-199 </span></p> | ||
<p id="4">(4) राजपुर नगर का एक वैश्य । इसने निमित्तज्ञानी के कहे अनुसार अपनी पुत्री विमला का विवाह जीवन्धर से किया था । महापुराण 75. 584-587</p> | <p id="4">(4) राजपुर नगर का एक वैश्य । इसने निमित्तज्ञानी के कहे अनुसार अपनी पुत्री विमला का विवाह जीवन्धर से किया था । <span class="GRef"> महापुराण 75. 584-587 </span></p> | ||
<p id="5">(5) हस्तिनापुर का निवासी एक वैश्य । इसकी | <p id="5">(5) हस्तिनापुर का निवासी एक वैश्य । इसकी स्त्री धनवती और उग्रसेन पुत्र था । <span class="GRef"> महापुराण 8.223 </span></p> | ||
<p id="6">(6) एक शिविका । तीर्थंकर अनन्तनाथ इसी में बैठकर दीक्षाभूमि-सहेतुक वन गये थे । महापुराण 60. 30-32</p> | <p id="6">(6) एक शिविका । तीर्थंकर अनन्तनाथ इसी में बैठकर दीक्षाभूमि-सहेतुक वन गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 60. 30-32 </span></p> | ||
<p id="7">(7) भरतक्षेत्र के अंग देश की चम्पा नगरी का एक | <p id="7">(7) भरतक्षेत्र के अंग देश की चम्पा नगरी का एक वैश्य । इसकी स्त्री पद्मावती तथा पद्मश्री पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 76.8, 46, 50 </span></p> | ||
<p id="8">(8) एक मुनि । ये वज्रदन्त चक्रवर्ती के पुत्र थे । इनका जन्म समुद्र में होने से यह नाम रखा गया था । इन्होंने बादलों को विलीन होता हुआ देखकर सब कुछ क्षणभंगुर जाना । इस बोध से इन्हें वैराग्य जागा । फलस्वरूप ये अमृतसागर मुनि के पास संयमी हो गये थे । महापुराण 76.134, 139-149</p> | <p id="8">(8) एक मुनि । ये वज्रदन्त चक्रवर्ती के पुत्र थे । इनका जन्म समुद्र में होने से यह नाम रखा गया था । इन्होंने बादलों को विलीन होता हुआ देखकर सब कुछ क्षणभंगुर जाना । इस बोध से इन्हें वैराग्य जागा । फलस्वरूप ये अमृतसागर मुनि के पास संयमी हो गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 76.134, 139-149 </span></p> | ||
<p id="9">(9) मगध देश के सुप्रतिष्ठ नगर का सेठ । इसकी | <p id="9">(9) मगध देश के सुप्रतिष्ठ नगर का सेठ । इसकी स्त्री प्रभाकरी थी । इस स्त्री से इसके दो पुत्र हुए― नागदत्त और कुबेरदत्त । इसने सागरसेन मुनि से अपनी तीन दिन की आयु शेष जानकर बाईस दिन का संन्यास धारण करके देह त्याग की थी तथा देव पद छाया था । <span class="GRef"> महापुराण 76.227-230 </span></p> | ||
Revision as of 21:48, 5 July 2020
(1) चौथे नारायण के पूर्वभव का नाम । पद्मपुराण 20.210
(2) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित एकक्षेत्र नगर का एक वैश्य । इसकी स्त्री रत्नप्रभा थी । इन दोनों की गुणवती नाम की पुत्री थी, जो सीता का जीव थी । पद्मपुराण 106.12
(3) विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी के निवासी सेठ सागरसेन का बड़ा पुत्र । यह समुद्रदत्त का बड़ा भाई था । इसकी बहिन सागरदत्ता थी । इसे सागरसेन की भानजी वैश्रवणदत्ता विवाही गयी थी । महापुराण 47.191-199
(4) राजपुर नगर का एक वैश्य । इसने निमित्तज्ञानी के कहे अनुसार अपनी पुत्री विमला का विवाह जीवन्धर से किया था । महापुराण 75. 584-587
(5) हस्तिनापुर का निवासी एक वैश्य । इसकी स्त्री धनवती और उग्रसेन पुत्र था । महापुराण 8.223
(6) एक शिविका । तीर्थंकर अनन्तनाथ इसी में बैठकर दीक्षाभूमि-सहेतुक वन गये थे । महापुराण 60. 30-32
(7) भरतक्षेत्र के अंग देश की चम्पा नगरी का एक वैश्य । इसकी स्त्री पद्मावती तथा पद्मश्री पुत्री थी । महापुराण 76.8, 46, 50
(8) एक मुनि । ये वज्रदन्त चक्रवर्ती के पुत्र थे । इनका जन्म समुद्र में होने से यह नाम रखा गया था । इन्होंने बादलों को विलीन होता हुआ देखकर सब कुछ क्षणभंगुर जाना । इस बोध से इन्हें वैराग्य जागा । फलस्वरूप ये अमृतसागर मुनि के पास संयमी हो गये थे । महापुराण 76.134, 139-149
(9) मगध देश के सुप्रतिष्ठ नगर का सेठ । इसकी स्त्री प्रभाकरी थी । इस स्त्री से इसके दो पुत्र हुए― नागदत्त और कुबेरदत्त । इसने सागरसेन मुनि से अपनी तीन दिन की आयु शेष जानकर बाईस दिन का संन्यास धारण करके देह त्याग की थी तथा देव पद छाया था । महापुराण 76.227-230