सुकोशल: Difference between revisions
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<p id="1">(1) भरतक्षेत्र का एक देश । इसका निर्माण वृषभदेव के मय में स्वय इन्द्र ने किया था । महापुराण 16.153</p> | <p id="1">(1) भरतक्षेत्र का एक देश । इसका निर्माण वृषभदेव के मय में स्वय इन्द्र ने किया था । <span class="GRef"> महापुराण 16.153 </span></p> | ||
<p id="2">(2) कौशल नगरी के राजा कीर्तिधर और रानी सहदेवी का पुत्र । इनके पिता ने इनके जन्मते ही दीक्षा ले लेने का निश्चय किया था । फलस्वरूप इन्हें एक पक्ष की उम्र में ही राज्य प्राप्त हो गया था । इन्हें वैराग्य न हो सके एतदर्थ इनकी माता ने मुनि अवस्था में आहार के लिए आये राजा कीर्तिधर को भी नगर से निकलवा दिया था । पिता का यह अपमान और | <p id="2">(2) कौशल नगरी के राजा कीर्तिधर और रानी सहदेवी का पुत्र । इनके पिता ने इनके जन्मते ही दीक्षा ले लेने का निश्चय किया था । फलस्वरूप इन्हें एक पक्ष की उम्र में ही राज्य प्राप्त हो गया था । इन्हें वैराग्य न हो सके एतदर्थ इनकी माता ने मुनि अवस्था में आहार के लिए आये राजा कीर्तिधर को भी नगर से निकलवा दिया था । पिता का यह अपमान और मां की कूटनीति का वसन्तलता धाय से ज्ञातकर इन्होंने चुपचाप राजमहल को छोड़ा और ये वन में मुनि कीर्तिधर के निकट गये । कुटुम्बियों और सामंतों के द्वारा संयम धारण करने के लिए मना किए जाने पर भी इन्होंने ‘‘पत्नी विचित्रमाला के गर्भ में यदि पुत्र है तो उसको मैंने राज्य दिया’’ यह कहकर पिता से महाव्रत धारण कर लिया इनकी माता सहदेवी जो मरकर व्याघ्री हुई, इन्हें देखते ही कुपित होकर उसने इनके शरीर को विदीर्ण कर दिया और चरणों का मांस भी खा लिया । यह सब होने पर भी ये अचल रहे । परिणामस्वरूप इन्हें केवलज्ञान हुआ और ये मुक्त हुए । इनकी पत्नी विचित्रमाला के पुत्र हिरण्यगर्भ को राज्य मिला । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21. 157-164, 22.1-23, 31-33, 41-47, 84-102 </span></p> | ||
Revision as of 21:49, 5 July 2020
(1) भरतक्षेत्र का एक देश । इसका निर्माण वृषभदेव के मय में स्वय इन्द्र ने किया था । महापुराण 16.153
(2) कौशल नगरी के राजा कीर्तिधर और रानी सहदेवी का पुत्र । इनके पिता ने इनके जन्मते ही दीक्षा ले लेने का निश्चय किया था । फलस्वरूप इन्हें एक पक्ष की उम्र में ही राज्य प्राप्त हो गया था । इन्हें वैराग्य न हो सके एतदर्थ इनकी माता ने मुनि अवस्था में आहार के लिए आये राजा कीर्तिधर को भी नगर से निकलवा दिया था । पिता का यह अपमान और मां की कूटनीति का वसन्तलता धाय से ज्ञातकर इन्होंने चुपचाप राजमहल को छोड़ा और ये वन में मुनि कीर्तिधर के निकट गये । कुटुम्बियों और सामंतों के द्वारा संयम धारण करने के लिए मना किए जाने पर भी इन्होंने ‘‘पत्नी विचित्रमाला के गर्भ में यदि पुत्र है तो उसको मैंने राज्य दिया’’ यह कहकर पिता से महाव्रत धारण कर लिया इनकी माता सहदेवी जो मरकर व्याघ्री हुई, इन्हें देखते ही कुपित होकर उसने इनके शरीर को विदीर्ण कर दिया और चरणों का मांस भी खा लिया । यह सब होने पर भी ये अचल रहे । परिणामस्वरूप इन्हें केवलज्ञान हुआ और ये मुक्त हुए । इनकी पत्नी विचित्रमाला के पुत्र हिरण्यगर्भ को राज्य मिला । पद्मपुराण 21. 157-164, 22.1-23, 31-33, 41-47, 84-102