स्तिमितसागर: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) राजा अन्धकवृष्णि और रानी सुभद्रा का तीसरा पुत्र । समुद्रविजय और | <p id="1"> (1) राजा अन्धकवृष्णि और रानी सुभद्रा का तीसरा पुत्र । समुद्रविजय और अक्षोभ्य इसके बड़े भाई तथा हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव छोटे भाई थे । ऊर्मिमान, वसुमान, वीर और पातालस्थिर ये इसके चार पुत्र थे । <span class="GRef"> महापुराण 70. 95, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.12-14, 48.46 </span></p> | ||
<p id="2">(2) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का राजा इसकी दो रानियाँ थीं― वसुन्धरा और अनुमति । इनमें अपराजित बलभद्र वसुन्धरा के पुत्र थे और अनन्तवीर्य नारायण अनुमति रानी के पुत्र थे । इसने बलभद्र को राज्य देकर तथा नारायण को युवराज बनाकर स्वयंप्रभ जिनेन्द्र से संयम धारण कर लिया था । धरणेन्द्र की ऋद्धि देखकर इसने वह वैभव पाने का निदान किया और मरकर धरणेन्द्र हुआ । महापुराण 62.412-414, 423-425, पांडवपुराण 4.246-251</p> | <p id="2">(2) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का राजा इसकी दो रानियाँ थीं― वसुन्धरा और अनुमति । इनमें अपराजित बलभद्र वसुन्धरा के पुत्र थे और अनन्तवीर्य नारायण अनुमति रानी के पुत्र थे । इसने बलभद्र को राज्य देकर तथा नारायण को युवराज बनाकर स्वयंप्रभ जिनेन्द्र से संयम धारण कर लिया था । धरणेन्द्र की ऋद्धि देखकर इसने वह वैभव पाने का निदान किया और मरकर धरणेन्द्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 62.412-414, 423-425, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.246-251 </span></p> | ||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
(1) राजा अन्धकवृष्णि और रानी सुभद्रा का तीसरा पुत्र । समुद्रविजय और अक्षोभ्य इसके बड़े भाई तथा हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव छोटे भाई थे । ऊर्मिमान, वसुमान, वीर और पातालस्थिर ये इसके चार पुत्र थे । महापुराण 70. 95, हरिवंशपुराण 18.12-14, 48.46
(2) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का राजा इसकी दो रानियाँ थीं― वसुन्धरा और अनुमति । इनमें अपराजित बलभद्र वसुन्धरा के पुत्र थे और अनन्तवीर्य नारायण अनुमति रानी के पुत्र थे । इसने बलभद्र को राज्य देकर तथा नारायण को युवराज बनाकर स्वयंप्रभ जिनेन्द्र से संयम धारण कर लिया था । धरणेन्द्र की ऋद्धि देखकर इसने वह वैभव पाने का निदान किया और मरकर धरणेन्द्र हुआ । महापुराण 62.412-414, 423-425, पांडवपुराण 4.246-251