स्वराज्यप्राप्तक्रिया: Difference between revisions
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<p> गृहस्थ की तिरेपन क्रियाओं में तेतालीसवीं क्रिया । इसमें जिनकी यह क्रिया होती है उसे राजाओं के द्वारा राजाधिराज के पद पर अभिषिक्त किया जाता है । वह भी दूसरे के शासन से रहित समुद्र पर्यन्त इस पृथिवी का शासन करता है । इस प्रकार सम्राट पद पर अभिषिक्त होना स्वराज्यप्राप्तिक्रिया कहलाती है । महापुराण 38.61, 232</p> | <p> गृहस्थ की तिरेपन क्रियाओं में तेतालीसवीं क्रिया । इसमें जिनकी यह क्रिया होती है उसे राजाओं के द्वारा राजाधिराज के पद पर अभिषिक्त किया जाता है । वह भी दूसरे के शासन से रहित समुद्र पर्यन्त इस पृथिवी का शासन करता है । इस प्रकार सम्राट पद पर अभिषिक्त होना स्वराज्यप्राप्तिक्रिया कहलाती है । <span class="GRef"> महापुराण 38.61, 232 </span></p> | ||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
गृहस्थ की तिरेपन क्रियाओं में तेतालीसवीं क्रिया । इसमें जिनकी यह क्रिया होती है उसे राजाओं के द्वारा राजाधिराज के पद पर अभिषिक्त किया जाता है । वह भी दूसरे के शासन से रहित समुद्र पर्यन्त इस पृथिवी का शासन करता है । इस प्रकार सम्राट पद पर अभिषिक्त होना स्वराज्यप्राप्तिक्रिया कहलाती है । महापुराण 38.61, 232