अज्ञान परिषह: Difference between revisions
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
सर्वार्थसिद्धि अध्याय /9/9/427 अज्ञोअयं न वेत्ति पशुसम इत्येवमाद्यधिक्षेपवचनं सहमानस्य परमदुश्चरतपोअनुष्ठायिनो नित्यमप्रमत्तचेतसो मेअद्यापि ज्ञानातिशयो नोत्पद्यत इति अनभिसंदधतोअज्ञानपरिषहजयोअवगन्तव्यः।
= "यह मूर्ख है, कुछ नहीं जानता, पशु के समान है" इत्यादि तिरस्कार के वचनों को मैं सहन करता हूँ, मैंने परम दुश्चर तप का अनुष्ठान किया है, मेरा चित्त निरन्तर अप्रमत्त रहता है, तो भी मेरे अभी तक भी ज्ञान का अतिशय नहीं उत्पन्न हुआ है, इस प्रकार विचार नहीं करनेवाले के अज्ञान परिषहजय जानना चाहिए
(राजवार्तिक अध्याय 9/9/27,612/13); ( चारित्रसार पृष्ठ 122/1)।
• प्रज्ञा व अज्ञान परिषह में भेदाभेद – देखें प्रज्ञा परिषह - 1।