अभव्य: Difference between revisions
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<p> मोक्ष प्राप्त करने के लिए अयोग्य जीव । ऐसे प्राणी जिनेन्द्र प्रतिपादित बोधि प्राप्त नहीं कर पाते, रत्नत्रय मार्ग भी इन्हें नहीं मिल पाता और ये मिथ्यात्व के उदय से दूषित रहते हैं । ऐसे जीवों का संसार सागर अनादि और अनन्त होता है । ये उचित समय पर सुपात्रों को दान नहीं दे पाते और कुक्षेत्र में इनकी मृत्यु होती है । इन्द्रियों के भेद से ये पांच प्रकार के होते है― एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । ये पाँचों भव्य और अभव्य दोनों प्रकार के होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 24.129,71.198, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.146, 203, 260-261, 2.158, 7.317, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3. 101, 106, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.63, </span></p> | |||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
देखें भव्य ।
पुराणकोष से
मोक्ष प्राप्त करने के लिए अयोग्य जीव । ऐसे प्राणी जिनेन्द्र प्रतिपादित बोधि प्राप्त नहीं कर पाते, रत्नत्रय मार्ग भी इन्हें नहीं मिल पाता और ये मिथ्यात्व के उदय से दूषित रहते हैं । ऐसे जीवों का संसार सागर अनादि और अनन्त होता है । ये उचित समय पर सुपात्रों को दान नहीं दे पाते और कुक्षेत्र में इनकी मृत्यु होती है । इन्द्रियों के भेद से ये पांच प्रकार के होते है― एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । ये पाँचों भव्य और अभव्य दोनों प्रकार के होते हैं । महापुराण 24.129,71.198, पद्मपुराण 105.146, 203, 260-261, 2.158, 7.317, हरिवंशपुराण 3. 101, 106, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.63,