अशोक: Difference between revisions
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<p>1. एक ग्रह - देखें [[ ग्रह ]]; 2. विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर -देखें [[ विद्याधर ]]; 3. वर्तमान भारतीय इतिहासका एक प्रसिद्ध राजा। यह चन्द्रगुप्त मौर्यका पोता और बिम्बसारका पुत्र था। मगध देशके राजाको बढ़ाकर इसने समस्त भारतमें एक छत्र राज्यकी स्थापना की थी। यह बडा धर्मात्मा था। पहले जैन था परन्तु पीछेसे बौद्ध हो गया था। ई. पू. 261 में इसने कलिंग देशपर विजय प्राप्त की और वहांके महारक्तप्रवाहको देखकर इसका चित्त संसारसे विरक्त हो गया है। समय-जैन मान्यतानुसार ई. पू. 277-236 है, और इतिहारकारों के अनुसार ई. पू. 273-232 है।</p> | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p>1. एक ग्रह - देखें [[ ग्रह ]]; 2. विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर -देखें [[ विद्याधर ]]; 3. वर्तमान भारतीय इतिहासका एक प्रसिद्ध राजा। यह चन्द्रगुप्त मौर्यका पोता और बिम्बसारका पुत्र था। मगध देशके राजाको बढ़ाकर इसने समस्त भारतमें एक छत्र राज्यकी स्थापना की थी। यह बडा धर्मात्मा था। पहले जैन था परन्तु पीछेसे बौद्ध हो गया था। ई. पू. 261 में इसने कलिंग देशपर विजय प्राप्त की और वहांके महारक्तप्रवाहको देखकर इसका चित्त संसारसे विरक्त हो गया है। समय-जैन मान्यतानुसार ई. पू. 277-236 है, और इतिहारकारों के अनुसार ई. पू. 273-232 है।</p> | |||
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<p id="2">(2) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की वीतशोका नगरी का राजा । इसकी रानी श्रीमती से श्रीकान्ता नामा पुत्री हुई थी । 60.68-69 <span class="GRef"> महापुराण </span>के अनुसार विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा और रानी सोमश्री से उत्पन्न श्रीकान्ता का पिता । <span class="GRef"> महापुराण </span>71.393-394</p> | |||
<p id="3">(3) एक वन-जीवन्धरकुमार की दीक्षास्थली । <span class="GRef"> महापुराण </span>75.676-677</p> | |||
<p id="4">(4) अयोध्या नगरी के सेठ वज्रांक और उसकी प्रिया मकरी का ज्येष्ठ पुत्र, तिलक का सहोदर । ये दोनों भाई द्युति नामक मुनि के पास दीक्षित हो गये थे । इन मुनियों को गन्तव्य स्थान तक पहुँचने में असमर्थ देख भामण्डल ने इनके आहार की व्यवस्था की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 123.86-102 </span></p> | |||
<p id="5">(5) तीर्थंकरों के केवलज्ञान होते ही रत्नमयी पुष्पों से अलंकृत रक्ताभ पल्लवों से युक्त विपुल स्वर वाला </p> | |||
<p>इस नाम का एक वृक्ष । तीर्थंकर मल्लिनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 4.24, 20.55 </span></p> | |||
<p id="6">(6) समवसरण भूमि का शोकनाशक वृक्ष । यह वृक्ष जिन प्रतिमाओं से युक्त, ध्वजा घंटा आदि से अलंकृत और वज्रमय मूलभाग वाला होता है । इमे चैत्य पादप कहा गया है । <span class="GRef"> महापुराण </span>22.184-199, 23.36-41</p> | |||
<p id="7">(7) एक शोभा-वृक्ष जो स्त्रियों के चरण से ताड़ित होकर विकसित होता है । <span class="GRef"> महापुराण </span>9.9, 6.62, <span class="GRef"> पांडवपुराण 9.12 </span></p> | |||
<p id="8">(8) अष्टप्रातिहार्यो मे प्रथम प्रातिहार्य । <span class="GRef"> महापुराण </span>7.293, 24.46-47</p> | |||
<p id="9">(9) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण </span>25.133 </p> | |||
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Revision as of 21:38, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
1. एक ग्रह - देखें ग्रह ; 2. विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर -देखें विद्याधर ; 3. वर्तमान भारतीय इतिहासका एक प्रसिद्ध राजा। यह चन्द्रगुप्त मौर्यका पोता और बिम्बसारका पुत्र था। मगध देशके राजाको बढ़ाकर इसने समस्त भारतमें एक छत्र राज्यकी स्थापना की थी। यह बडा धर्मात्मा था। पहले जैन था परन्तु पीछेसे बौद्ध हो गया था। ई. पू. 261 में इसने कलिंग देशपर विजय प्राप्त की और वहांके महारक्तप्रवाहको देखकर इसका चित्त संसारसे विरक्त हो गया है। समय-जैन मान्यतानुसार ई. पू. 277-236 है, और इतिहारकारों के अनुसार ई. पू. 273-232 है।
(विशेष देखें इतिहास - 3. 4)
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक नगर । हरिवंशपुराण 22.89
(2) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की वीतशोका नगरी का राजा । इसकी रानी श्रीमती से श्रीकान्ता नामा पुत्री हुई थी । 60.68-69 महापुराण के अनुसार विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा और रानी सोमश्री से उत्पन्न श्रीकान्ता का पिता । महापुराण 71.393-394
(3) एक वन-जीवन्धरकुमार की दीक्षास्थली । महापुराण 75.676-677
(4) अयोध्या नगरी के सेठ वज्रांक और उसकी प्रिया मकरी का ज्येष्ठ पुत्र, तिलक का सहोदर । ये दोनों भाई द्युति नामक मुनि के पास दीक्षित हो गये थे । इन मुनियों को गन्तव्य स्थान तक पहुँचने में असमर्थ देख भामण्डल ने इनके आहार की व्यवस्था की थी । पद्मपुराण 123.86-102
(5) तीर्थंकरों के केवलज्ञान होते ही रत्नमयी पुष्पों से अलंकृत रक्ताभ पल्लवों से युक्त विपुल स्वर वाला
इस नाम का एक वृक्ष । तीर्थंकर मल्लिनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे दीक्षा ली थी । पद्मपुराण 4.24, 20.55
(6) समवसरण भूमि का शोकनाशक वृक्ष । यह वृक्ष जिन प्रतिमाओं से युक्त, ध्वजा घंटा आदि से अलंकृत और वज्रमय मूलभाग वाला होता है । इमे चैत्य पादप कहा गया है । महापुराण 22.184-199, 23.36-41
(7) एक शोभा-वृक्ष जो स्त्रियों के चरण से ताड़ित होकर विकसित होता है । महापुराण 9.9, 6.62, पांडवपुराण 9.12
(8) अष्टप्रातिहार्यो मे प्रथम प्रातिहार्य । महापुराण 7.293, 24.46-47
(9) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.133