उग्रसेन: Difference between revisions
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<p> महापुराण | <p>(भारतीय इतिहास 1/286) - अपर नाम जनक था - अतः देखें [[ जनक ]]। राजुलके पिता - देखें [[ बृहत् जैन शब्दार्णव द्वितीय खंड ]]।</p> | ||
<p> <span class="GRef"> महापुराण </span>सर्ग श्लो. मथुराका राजा व कंसका पिता था।33-23। पूर्वभवके वैरसे कंसने इनको जेलमें डाल दिया था। 25-26। कृष्ण-द्वारा कंसके मारे जानेपर पुनः इनको राज्यकी प्राप्ति हो गयी ।36-51।</p> | |||
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<p id="1"> (1) हस्तिनापुर नगर के निवासी वैश्य सागरदत्त और उसकी पत्नी धनवती का पुत्र यह स्वभाव से क्रोधी था । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध के कारण इसने तिर्यंच आयु का बन्ध किया । राजाज्ञा के बिना राजकीय वस्तुएँ दूसरों को देने के कारण यह राजा द्वारा मारा गया और मरकर व्याघ्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 8.224-226 </span></p> | |||
<p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरदिशावर्ती अलका नगरी के नृप महासेन और उसकी रानी सुन्दरी का ज्येष्ठ पुत्र, वरसेन अ अग्रज और वसुन्धरा का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 76. 262-263, 265 </span></p> | |||
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Revision as of 21:38, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
(भारतीय इतिहास 1/286) - अपर नाम जनक था - अतः देखें जनक । राजुलके पिता - देखें बृहत् जैन शब्दार्णव द्वितीय खंड ।
महापुराण सर्ग श्लो. मथुराका राजा व कंसका पिता था।33-23। पूर्वभवके वैरसे कंसने इनको जेलमें डाल दिया था। 25-26। कृष्ण-द्वारा कंसके मारे जानेपर पुनः इनको राज्यकी प्राप्ति हो गयी ।36-51।
पुराणकोष से
(1) हस्तिनापुर नगर के निवासी वैश्य सागरदत्त और उसकी पत्नी धनवती का पुत्र यह स्वभाव से क्रोधी था । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध के कारण इसने तिर्यंच आयु का बन्ध किया । राजाज्ञा के बिना राजकीय वस्तुएँ दूसरों को देने के कारण यह राजा द्वारा मारा गया और मरकर व्याघ्र हुआ । महापुराण 8.224-226
(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरदिशावर्ती अलका नगरी के नृप महासेन और उसकी रानी सुन्दरी का ज्येष्ठ पुत्र, वरसेन अ अग्रज और वसुन्धरा का सहोदर । महापुराण 76. 262-263, 265
(3) भगवान् नेमिनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । महापुराण 76.532
(4) हरिवंशी राजा नरवृष्टि और उसकी रानी पद्मावती का ज्येष्ठ पुत्र, देवसेन ओर महासेन का अग्रज तथा गांधारी का सहोदर । महापुराण 70.100-101 हरिवंश पुराण में नरवृष्टि को भोजकवृष्णि कहा गया है । हरिवंशपुराण 18.16 इसके धर, गुणधर, युक्तिक, दुर्धर, सागर, कंस और चन्द्र आदि अनेक पुत्र थे । हरिवंशपुराण 48.39 यह मथुरा नगरी का राजा था । पूर्वभव के वैर से इसी के पुत्र कंस ने इसे जेल में डाल दिया था । कृष्ण ने इसे जेल से मुक्त कराया था कृष्ण-जरासन्ध युद्ध में इसने कृष्ण का साथ दिया था । नेमिकुमार के लिए कृष्ण ने स्वयं जाकर इनकी ही पुत्री राजीमति की याचना की थी । यह एक अक्षौहिणी सेना का स्वामी था । मपू0 7.331-338, 71. 4-5, 73-76, 145-146, हरिवंशपुराण 1.93, 50.67