पद्मरुचि: Difference between revisions
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<p> क्षेमपुर के राजा विपुलवाहन का पुत्र । यह एकक्षेत्र नगर के वणिक् धर्मदत्त का जीव था । इसने एक मुनि के उपदेश से रात्रिजल का त्याग किया था । फलस्वरूप मरकर यह स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह महापुर नगर में मेरु नामक सेठ और उसकी भार्या धारिणी का पुत्र हुआ । एक समय इसने एक मरणासन्न बैल को पंच नमस्कार मंत्र सुनाया था । मंत्र के प्रभाव से बैल मरकर महापुर नगर में ही छत्रच्छाय का पुत्र हुआ । उसका नाम वृषभध्वज रखा गया था । वृषभध्वज से परिचय होने पर इसकी वृषभध्वज ने अर्चना की थी । अन्त में इसने श्रावक व्रत लेकर वृषभध्वज के साथ जिनमन्दिर और जिनबिम्ब बनवाये तथा समाधिमरण करके यह ईशान स्वर्ग में वैमानिक देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर विजया पर्वत के नन्द्यावर्त नगर के राजा नन्दीश्वर का पुत्र हुआ । इसने संयम धारण कर लिया और तप तपते हुए मरण करके यह माहेन्द्र स्वर्ग में देव हो गया । वहाँ से च्युत होकर यह इस भव में | <p> क्षेमपुर के राजा विपुलवाहन का पुत्र । यह एकक्षेत्र नगर के वणिक् धर्मदत्त का जीव था । इसने एक मुनि के उपदेश से रात्रिजल का त्याग किया था । फलस्वरूप मरकर यह स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह महापुर नगर में मेरु नामक सेठ और उसकी भार्या धारिणी का पुत्र हुआ । एक समय इसने एक मरणासन्न बैल को पंच नमस्कार मंत्र सुनाया था । मंत्र के प्रभाव से बैल मरकर महापुर नगर में ही छत्रच्छाय का पुत्र हुआ । उसका नाम वृषभध्वज रखा गया था । वृषभध्वज से परिचय होने पर इसकी वृषभध्वज ने अर्चना की थी । अन्त में इसने श्रावक व्रत लेकर वृषभध्वज के साथ जिनमन्दिर और जिनबिम्ब बनवाये तथा समाधिमरण करके यह ईशान स्वर्ग में वैमानिक देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर विजया पर्वत के नन्द्यावर्त नगर के राजा नन्दीश्वर का पुत्र हुआ । इसने संयम धारण कर लिया और तप तपते हुए मरण करके यह माहेन्द्र स्वर्ग में देव हो गया । वहाँ से च्युत होकर यह इस भव में पद्मरुचि हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106.30-76 </span></p> | ||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
क्षेमपुर के राजा विपुलवाहन का पुत्र । यह एकक्षेत्र नगर के वणिक् धर्मदत्त का जीव था । इसने एक मुनि के उपदेश से रात्रिजल का त्याग किया था । फलस्वरूप मरकर यह स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह महापुर नगर में मेरु नामक सेठ और उसकी भार्या धारिणी का पुत्र हुआ । एक समय इसने एक मरणासन्न बैल को पंच नमस्कार मंत्र सुनाया था । मंत्र के प्रभाव से बैल मरकर महापुर नगर में ही छत्रच्छाय का पुत्र हुआ । उसका नाम वृषभध्वज रखा गया था । वृषभध्वज से परिचय होने पर इसकी वृषभध्वज ने अर्चना की थी । अन्त में इसने श्रावक व्रत लेकर वृषभध्वज के साथ जिनमन्दिर और जिनबिम्ब बनवाये तथा समाधिमरण करके यह ईशान स्वर्ग में वैमानिक देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर विजया पर्वत के नन्द्यावर्त नगर के राजा नन्दीश्वर का पुत्र हुआ । इसने संयम धारण कर लिया और तप तपते हुए मरण करके यह माहेन्द्र स्वर्ग में देव हो गया । वहाँ से च्युत होकर यह इस भव में पद्मरुचि हुआ । पद्मपुराण 106.30-76