भव्यकूट: Difference between revisions
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
समवसरण का दैदीप्यमान शिखरों से युक्त एक स्तूप । इसे अभव्य जीव नहीं देख पाते क्योंकि स्तूप के प्रभाव से उनके नेत्र अन्धे हो जाते हैं । हरिवंशपुराण 57.104