वज्रदन्त: Difference between revisions
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<p> विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा यशोधर और रानी वसुन्धरा का पुत्र । इसकी रानी लक्ष्मीवती तथा पुत्री श्रीमती थी । पिता को केवलज्ञान तथा इनकी आयुधशाला में चक्र का प्रकट होना ये दो कार्य एक साथ हुए थे । यह चक्रवर्ती था । इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ प्रकट हुई थी । अपनी पुत्री श्रीमती का विवाह इसने वज्रजंघ से किया था । विषय भोगों से विरक्त होकर इसने अपना साम्राज्य पुत्र अमिततेज को देना चाहा था, किन्तु उसका राज्य नहीं लेने का दृढ़ निश्चय जानकर अमिततेज के पुत्र पुण्डरीक को राज्यभार सौंपा था । इसके पश्चात् यह अपने पुत्र, स्त्रियों तथा अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गया था । इसके साथ इसकी साठ हजार रानियों, बीस हजार राजाओं और एक हजार पुत्रों ने दीक्षा ली थी । यह अवधिज्ञानी था । इसने अपनी पुत्री को बताया था कि तीसरे दिन उसका भानजा वज्रजंघ आयेगा और वह ही उसका पति होगा । महापुराण 6.58-60, 103, 110, 203, 7. 102-105, 249, 8. 79-85</p> | <p> विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा यशोधर और रानी वसुन्धरा का पुत्र । इसकी रानी लक्ष्मीवती तथा पुत्री श्रीमती थी । पिता को केवलज्ञान तथा इनकी आयुधशाला में चक्र का प्रकट होना ये दो कार्य एक साथ हुए थे । यह चक्रवर्ती था । इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ प्रकट हुई थी । अपनी पुत्री श्रीमती का विवाह इसने वज्रजंघ से किया था । विषय भोगों से विरक्त होकर इसने अपना साम्राज्य पुत्र अमिततेज को देना चाहा था, किन्तु उसका राज्य नहीं लेने का दृढ़ निश्चय जानकर अमिततेज के पुत्र पुण्डरीक को राज्यभार सौंपा था । इसके पश्चात् यह अपने पुत्र, स्त्रियों तथा अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गया था । इसके साथ इसकी साठ हजार रानियों, बीस हजार राजाओं और एक हजार पुत्रों ने दीक्षा ली थी । यह अवधिज्ञानी था । इसने अपनी पुत्री को बताया था कि तीसरे दिन उसका भानजा वज्रजंघ आयेगा और वह ही उसका पति होगा । <span class="GRef"> महापुराण 6.58-60, 103, 110, 203, 7. 102-105, 249, 8. 79-85 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक महामुनि । यह वज्रदत्त मुनि का ही अपर नाम है । महापुराण 59.248-271 देखें [[ वज्रदत्त ]]</p> | <p id="2">(2) एक महामुनि । यह वज्रदत्त मुनि का ही अपर नाम है । <span class="GRef"> महापुराण 59.248-271 </span>देखें [[ वज्रदत्त ]]</p> | ||
<p id="3">(3) पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा । यशोधरा इसकी रानी थी श्रुतकेवली सागरदत्त इसी के पुत्र थे । महापुराण 76.134-142</p> | <p id="3">(3) पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा । यशोधरा इसकी रानी थी श्रुतकेवली सागरदत्त इसी के पुत्र थे । <span class="GRef"> महापुराण 76.134-142 </span></p> | ||
<p id="4">(4) बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के पूर्वभव के पिता । पद्मपुराण 20.27-30</p> | <p id="4">(4) बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के पूर्वभव के पिता । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.27-30 </span></p> | ||
Revision as of 21:46, 5 July 2020
विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा यशोधर और रानी वसुन्धरा का पुत्र । इसकी रानी लक्ष्मीवती तथा पुत्री श्रीमती थी । पिता को केवलज्ञान तथा इनकी आयुधशाला में चक्र का प्रकट होना ये दो कार्य एक साथ हुए थे । यह चक्रवर्ती था । इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ प्रकट हुई थी । अपनी पुत्री श्रीमती का विवाह इसने वज्रजंघ से किया था । विषय भोगों से विरक्त होकर इसने अपना साम्राज्य पुत्र अमिततेज को देना चाहा था, किन्तु उसका राज्य नहीं लेने का दृढ़ निश्चय जानकर अमिततेज के पुत्र पुण्डरीक को राज्यभार सौंपा था । इसके पश्चात् यह अपने पुत्र, स्त्रियों तथा अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गया था । इसके साथ इसकी साठ हजार रानियों, बीस हजार राजाओं और एक हजार पुत्रों ने दीक्षा ली थी । यह अवधिज्ञानी था । इसने अपनी पुत्री को बताया था कि तीसरे दिन उसका भानजा वज्रजंघ आयेगा और वह ही उसका पति होगा । महापुराण 6.58-60, 103, 110, 203, 7. 102-105, 249, 8. 79-85
(2) एक महामुनि । यह वज्रदत्त मुनि का ही अपर नाम है । महापुराण 59.248-271 देखें वज्रदत्त
(3) पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा । यशोधरा इसकी रानी थी श्रुतकेवली सागरदत्त इसी के पुत्र थे । महापुराण 76.134-142
(4) बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के पूर्वभव के पिता । पद्मपुराण 20.27-30