योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 124: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: कषाय रहित जीव के साम्परायिक आस्रव मानने पर आपत्ति - <p class="SanskritGatha"> जीवस्य नि...) |
No edit summary |
||
Line 8: | Line 8: | ||
<p><b> अन्वय </b>:- यदि निष्कषायस्य जीवस्य कल्मषं आगच्छति तदा कस्य अपि (जीवस्य) कदाचन मुक्ति: न संपद्यते । </p> | <p><b> अन्वय </b>:- यदि निष्कषायस्य जीवस्य कल्मषं आगच्छति तदा कस्य अपि (जीवस्य) कदाचन मुक्ति: न संपद्यते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- यदि कषायरहित जीव के भी मोहरूप पाप कर्मो का आस्रव होता है, यह बात मान ली जाय तो फिर किसी भी जीव को कभी मोक्ष हो ही नहीं सकता । </p> | <p><b> सरलार्थ </b>:- यदि कषायरहित जीव के भी मोहरूप पाप कर्मो का आस्रव होता है, यह बात मान ली जाय तो फिर किसी भी जीव को कभी मोक्ष हो ही नहीं सकता । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 123 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 123 | पिछली गाथा]] |
Revision as of 08:57, 19 January 2009
कषाय रहित जीव के साम्परायिक आस्रव मानने पर आपत्ति -
जीवस्य निष्कषायस्य यद्यागच्छति कल्मषम् ।
तदा संपद्यते मुक्तिर्न कस्यापि कदाचन ।।१२४।।
अन्वय :- यदि निष्कषायस्य जीवस्य कल्मषं आगच्छति तदा कस्य अपि (जीवस्य) कदाचन मुक्ति: न संपद्यते ।
सरलार्थ :- यदि कषायरहित जीव के भी मोहरूप पाप कर्मो का आस्रव होता है, यह बात मान ली जाय तो फिर किसी भी जीव को कभी मोक्ष हो ही नहीं सकता ।