त्रिदंडी: Difference between revisions
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<p> त्रिदण्डधारी परिव्राजक । ये भगवान् वृषभदेव के साथ दीक्षित हुए थे पर परीषह सहने में असमर्थ तथा वनदेवता के वचन से भयाक्रान्त होकर पथभ्रष्ट हो गये थे । ये वृक्षों की छाल पहिनने लगे थे और स्वच्छ जल पीकर तथा कन्दमूल खाकर वन में निर्मित कुटियों में रहते थे । महापुराण 18-51-60</p> | <p> त्रिदण्डधारी परिव्राजक । ये भगवान् वृषभदेव के साथ दीक्षित हुए थे पर परीषह सहने में असमर्थ तथा वनदेवता के वचन से भयाक्रान्त होकर पथभ्रष्ट हो गये थे । ये वृक्षों की छाल पहिनने लगे थे और स्वच्छ जल पीकर तथा कन्दमूल खाकर वन में निर्मित कुटियों में रहते थे । <span class="GRef"> महापुराण 18-51-60 </span></p> | ||
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त्रिदण्डधारी परिव्राजक । ये भगवान् वृषभदेव के साथ दीक्षित हुए थे पर परीषह सहने में असमर्थ तथा वनदेवता के वचन से भयाक्रान्त होकर पथभ्रष्ट हो गये थे । ये वृक्षों की छाल पहिनने लगे थे और स्वच्छ जल पीकर तथा कन्दमूल खाकर वन में निर्मित कुटियों में रहते थे । महापुराण 18-51-60