नंदीश्वर: Difference between revisions
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<p id="2">(2) आठवाँ द्वीप इसे इसी नाम का सागर घेरे हुए है । इन्द्र इसका जल तीर्थंकर के अभिषेक के लिए लाता है । इसका विस्तार एक सौ | <p id="2">(2) आठवाँ द्वीप इसे इसी नाम का सागर घेरे हुए है । इन्द्र इसका जल तीर्थंकर के अभिषेक के लिए लाता है । इसका विस्तार एक सौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख, आभ्यन्तर परिधि एक हजार छत्तीस करोड़ बारह लाख दो हजार सात सौ योजन तथा बाह्य परिधि दो हजार बहत्तर करोड़ तैंतीस लाख चौवन हमार एक सी नब्बे योजन है । इसमें चार अंजनगिरि, सोलह वापियाँ, सौलह दधिमुख और बत्तीस रतिकर आभ्यन्तर कोणों में तथा बत्तीस बाह्य कोणों में है । यहाँ बावन जिनालय है । इनमें रत्न और स्वर्णमय प्रतिमाएं विराजमान होने से प्रतिवर्ष फाल्गुन, आषाढ़ और कार्तिक मास के आष्टाह्निक पर्वों में देव आकर पूजा करते हैं । यहाँँ चौसठ वनखण्डों पर भव्य प्रासाद है, जिनमें उन वनों के नामधारी देव रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 5.212 , 292, 7.161, 16.214-215, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 15.74, 29. 1, 9 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.616, 647-682, 22.1-2 </span></p> | ||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
(1) एक व्रत । इसमें नन्दीश्वर द्वीप की प्रत्येक दिशा में विद्यमान चार दधिमुख, आठ रतिकर और एक अंजनगिरि को लक्ष्य कर प्रत्येक दिशा-सम्बन्धी क्रमश: चार और आठ उपवास तथा एक बेला करने का विधान है । इस प्रकार इस व्रत में चारों दिशाओं के अड़तालीस उपवास और चार बेला करने पड़ते हैं । इसका फल चक्रवर्तित्व तथा जिनेन्द्र पद की प्राप्ति है । हरिवंशपुराण 34.84
(2) आठवाँ द्वीप इसे इसी नाम का सागर घेरे हुए है । इन्द्र इसका जल तीर्थंकर के अभिषेक के लिए लाता है । इसका विस्तार एक सौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख, आभ्यन्तर परिधि एक हजार छत्तीस करोड़ बारह लाख दो हजार सात सौ योजन तथा बाह्य परिधि दो हजार बहत्तर करोड़ तैंतीस लाख चौवन हमार एक सी नब्बे योजन है । इसमें चार अंजनगिरि, सोलह वापियाँ, सौलह दधिमुख और बत्तीस रतिकर आभ्यन्तर कोणों में तथा बत्तीस बाह्य कोणों में है । यहाँ बावन जिनालय है । इनमें रत्न और स्वर्णमय प्रतिमाएं विराजमान होने से प्रतिवर्ष फाल्गुन, आषाढ़ और कार्तिक मास के आष्टाह्निक पर्वों में देव आकर पूजा करते हैं । यहाँँ चौसठ वनखण्डों पर भव्य प्रासाद है, जिनमें उन वनों के नामधारी देव रहते हैं । महापुराण 5.212 , 292, 7.161, 16.214-215, पद्मपुराण 15.74, 29. 1, 9 हरिवंशपुराण 5.616, 647-682, 22.1-2