योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 76: Difference between revisions
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पुद्गल का उपकार - | <p class="Utthanika">पुद्गल का उपकार -</p> | ||
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जीवितं मरणं सौख्यं दु:खं कुर्वन्ति पुद्गला: ।<br> | जीवितं मरणं सौख्यं दु:खं कुर्वन्ति पुद्गला: ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- पुद्गला: भवकानने भ्रतां जीवानाम् उपकारेण जीवितं, मरणं, सौख्यं, दु:खं कुर्वन्ति । सरलार्थ - संसाररूपी वन में भ्रण करनेवाले जीवों पर पुद्गल अपने निमित्त से जीवन, मरण, सुख तथा दु:खरूप उपकार करते हैं अर्थात् जीवों के इन कार्यरूप परिणमन में पुद्गल निमित्त होते हैं । भावार्थ - जब जीव द्रव्य अपनी योग्यता से/उपादान से अर्थात् अपने ही कारण जीवन, मरण, सुख, दुखरूप परिणत होता है, उस समय जिस पुद्गल पर अनुकूलता का आरोप आता है, उस पुद्गल का जीव पर उपकार हुआ, ऐसा व्यवहार चलता है, उसे ही पुद्गल ने जीव पर उपकार किया; ऐसा कथन जिनवाणी में आता है । उपकार शब्द से मात्र अनुकूल अथवा अच्छे कार्य में सहयोगी होना, इतना ही अर्थ नहीं करना; क्योंकि इसी श्लोक में सुख में और दुख में तथा जीवन में और मरण में पुद्गल का उपकार होता है - | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- पुद्गला: भवकानने भ्रतां जीवानाम् उपकारेण जीवितं, मरणं, सौख्यं, दु:खं कुर्वन्ति । सरलार्थ - संसाररूपी वन में भ्रण करनेवाले जीवों पर पुद्गल अपने निमित्त से जीवन, मरण, सुख तथा दु:खरूप उपकार करते हैं अर्थात् जीवों के इन कार्यरूप परिणमन में पुद्गल निमित्त होते हैं । भावार्थ - जब जीव द्रव्य अपनी योग्यता से/उपादान से अर्थात् अपने ही कारण जीवन, मरण, सुख, दुखरूप परिणत होता है, उस समय जिस पुद्गल पर अनुकूलता का आरोप आता है, उस पुद्गल का जीव पर उपकार हुआ, ऐसा व्यवहार चलता है, उसे ही पुद्गल ने जीव पर उपकार किया; ऐसा कथन जिनवाणी में आता है । उपकार शब्द से मात्र अनुकूल अथवा अच्छे कार्य में सहयोगी होना, इतना ही अर्थ नहीं करना; क्योंकि इसी श्लोक में सुख में और दुख में तथा जीवन में और मरण में पुद्गल का उपकार होता है - | ||
ऐसा कहा है; इससे ही सब विषय स्पष्ट हो जाता है । यह विषय तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय ५ के सूत्र १९ एवं तत्त्वार्थसार अध्याय ३, श्लोक ३१ में भी आया है । </p> | ऐसा कहा है; इससे ही सब विषय स्पष्ट हो जाता है । यह विषय तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय ५ के सूत्र १९ एवं तत्त्वार्थसार अध्याय ३, श्लोक ३१ में भी आया है । </p> |
Latest revision as of 10:16, 15 May 2009
पुद्गल का उपकार -
जीवितं मरणं सौख्यं दु:खं कुर्वन्ति पुद्गला: ।
उपकारेण जीवानां भ्रतां भवकानने ।।७६।।
अन्वय :- पुद्गला: भवकानने भ्रतां जीवानाम् उपकारेण जीवितं, मरणं, सौख्यं, दु:खं कुर्वन्ति । सरलार्थ - संसाररूपी वन में भ्रण करनेवाले जीवों पर पुद्गल अपने निमित्त से जीवन, मरण, सुख तथा दु:खरूप उपकार करते हैं अर्थात् जीवों के इन कार्यरूप परिणमन में पुद्गल निमित्त होते हैं । भावार्थ - जब जीव द्रव्य अपनी योग्यता से/उपादान से अर्थात् अपने ही कारण जीवन, मरण, सुख, दुखरूप परिणत होता है, उस समय जिस पुद्गल पर अनुकूलता का आरोप आता है, उस पुद्गल का जीव पर उपकार हुआ, ऐसा व्यवहार चलता है, उसे ही पुद्गल ने जीव पर उपकार किया; ऐसा कथन जिनवाणी में आता है । उपकार शब्द से मात्र अनुकूल अथवा अच्छे कार्य में सहयोगी होना, इतना ही अर्थ नहीं करना; क्योंकि इसी श्लोक में सुख में और दुख में तथा जीवन में और मरण में पुद्गल का उपकार होता है - ऐसा कहा है; इससे ही सब विषय स्पष्ट हो जाता है । यह विषय तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय ५ के सूत्र १९ एवं तत्त्वार्थसार अध्याय ३, श्लोक ३१ में भी आया है ।