अनुत्पत्तिसमाजाति: Difference between revisions
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<p>न्या.सू./5/1/12/292 प्रागुत्पत्तेः कारणाभावादनुत्पत्तिसमः ॥12॥ </p> | <p class="SanskritText">न्या.सू./5/1/12/292 प्रागुत्पत्तेः कारणाभावादनुत्पत्तिसमः ॥12॥ </p> | ||
<p>= उत्पत्ति के पहले कारण के न रहनेसे `अनुत्पत्तिसम' होता है। शब्द अनित्य है, प्रयत्न की कोई आवश्यकता नहीं होने से घट की नाई है, ऐसा कहनेपर दूसरा कहता है कि उत्पत्ति के पहले अनुत्पन्न शब्द में प्रयत्नावश्यकता जो अनित्यत्व की हेतु है, वह नहीं है। उसके अभावमें नित्य का होना प्राप्त हुआ और नित्य की उत्पत्ति है नहीं, अनुत्पत्ति से प्रत्यवस्थान होनेसे अनुत्पत्तिसम हुआ। </p> | <p class="HindiText">= उत्पत्ति के पहले कारण के न रहनेसे `अनुत्पत्तिसम' होता है। शब्द अनित्य है, प्रयत्न की कोई आवश्यकता नहीं होने से घट की नाई है, ऐसा कहनेपर दूसरा कहता है कि उत्पत्ति के पहले अनुत्पन्न शब्द में प्रयत्नावश्यकता जो अनित्यत्व की हेतु है, वह नहीं है। उसके अभावमें नित्य का होना प्राप्त हुआ और नित्य की उत्पत्ति है नहीं, अनुत्पत्ति से प्रत्यवस्थान होनेसे अनुत्पत्तिसम हुआ। </p> | ||
<p>( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.373/51/4)।</p> | <p>( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.373/51/4)।</p> | ||
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Revision as of 13:46, 10 July 2020
न्या.सू./5/1/12/292 प्रागुत्पत्तेः कारणाभावादनुत्पत्तिसमः ॥12॥
= उत्पत्ति के पहले कारण के न रहनेसे `अनुत्पत्तिसम' होता है। शब्द अनित्य है, प्रयत्न की कोई आवश्यकता नहीं होने से घट की नाई है, ऐसा कहनेपर दूसरा कहता है कि उत्पत्ति के पहले अनुत्पन्न शब्द में प्रयत्नावश्यकता जो अनित्यत्व की हेतु है, वह नहीं है। उसके अभावमें नित्य का होना प्राप्त हुआ और नित्य की उत्पत्ति है नहीं, अनुत्पत्ति से प्रत्यवस्थान होनेसे अनुत्पत्तिसम हुआ।
( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.373/51/4)।