अन्वय: Difference between revisions
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<p>राजवार्तिक अध्याय 5/2,436/21 स्वजात्यपरित्यागेनावस्थितिरन्वयः।</p> | <p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 5/2,436/21 स्वजात्यपरित्यागेनावस्थितिरन्वयः।</p> | ||
<p>= अपनी जातिको न छोड़ते हुए उसी रूपसे अवस्थित रहना अन्वय है।</p> | <p class="HindiText">= अपनी जातिको न छोड़ते हुए उसी रूपसे अवस्थित रहना अन्वय है।</p> | ||
<p>राजवार्तिक अध्याय 4/42,11/252/14 के पुनरन्वयाः। बुद्ध्यभिधानानुवृत्तिलिङ्गेन अनुमीयमानाविच्छेदाः स्वात्मभूतास्तित्वादयः।</p> | <p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 4/42,11/252/14 के पुनरन्वयाः। बुद्ध्यभिधानानुवृत्तिलिङ्गेन अनुमीयमानाविच्छेदाः स्वात्मभूतास्तित्वादयः।</p> | ||
<p>= प्रश्न-अन्वय क्या है? उत्तर-अनुगताकार (यह वही है ऐसी) बुद्धि और अनुगताकार शब्द प्रयोगके द्वारा अनुमान किये जानेवाले तथा नित्य स्थित स्वात्मभूत अस्तित्वादि गुण अन्वय कहलाते है।</p> | <p class="HindiText">= प्रश्न-अन्वय क्या है? उत्तर-अनुगताकार (यह वही है ऐसी) बुद्धि और अनुगताकार शब्द प्रयोगके द्वारा अनुमान किये जानेवाले तथा नित्य स्थित स्वात्मभूत अस्तित्वादि गुण अन्वय कहलाते है।</p> | ||
<p> समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 223 अन्वयव्यतिरेकशब्देन सर्वत्र विधिनिषेधौ ज्ञातव्यौ।</p> | <p class="SanskritText">समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 223 अन्वयव्यतिरेकशब्देन सर्वत्र विधिनिषेधौ ज्ञातव्यौ।</p> | ||
<p>= अन्वय और व्यतिरेक शब्दसे सर्वत्र विधि-निषेध जानना चाहिए।</p> | <p class="HindiText">= अन्वय और व्यतिरेक शब्दसे सर्वत्र विधि-निषेध जानना चाहिए।</p> | ||
<p> पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 143 सत्ता सत्त्वं सद्वा सामान्यं द्रव्यमन्वयो वस्तु। अर्थो विधिरविशेषादेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥143॥</p> | <p class="SanskritText">पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 143 सत्ता सत्त्वं सद्वा सामान्यं द्रव्यमन्वयो वस्तु। अर्थो विधिरविशेषादेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥143॥</p> | ||
<p>= सत्ता, सत्त्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि ये सब शब्द अविशेषरूपसे एकार्थवाचक हैं।</p> | <p class="HindiText">= सत्ता, सत्त्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि ये सब शब्द अविशेषरूपसे एकार्थवाचक हैं।</p> | ||
<p>2. अन्वय व्यतिरेककी परस्पर सापेक्षता-देखें [[ सप्तभंगी#4 | सप्तभंगी - 4]]।</p> | <p>2. अन्वय व्यतिरेककी परस्पर सापेक्षता-देखें [[ सप्तभंगी#4 | सप्तभंगी - 4]]।</p> | ||
<p>3. अन्वय द्रव्यार्थि नय-देखें [[ नय#IV.2 | नय - IV.2]]।</p> | <p>3. अन्वय द्रव्यार्थि नय-देखें [[ नय#IV.2 | नय - IV.2]]।</p> | ||
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Revision as of 13:46, 10 July 2020
राजवार्तिक अध्याय 5/2,436/21 स्वजात्यपरित्यागेनावस्थितिरन्वयः।
= अपनी जातिको न छोड़ते हुए उसी रूपसे अवस्थित रहना अन्वय है।
राजवार्तिक अध्याय 4/42,11/252/14 के पुनरन्वयाः। बुद्ध्यभिधानानुवृत्तिलिङ्गेन अनुमीयमानाविच्छेदाः स्वात्मभूतास्तित्वादयः।
= प्रश्न-अन्वय क्या है? उत्तर-अनुगताकार (यह वही है ऐसी) बुद्धि और अनुगताकार शब्द प्रयोगके द्वारा अनुमान किये जानेवाले तथा नित्य स्थित स्वात्मभूत अस्तित्वादि गुण अन्वय कहलाते है।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 223 अन्वयव्यतिरेकशब्देन सर्वत्र विधिनिषेधौ ज्ञातव्यौ।
= अन्वय और व्यतिरेक शब्दसे सर्वत्र विधि-निषेध जानना चाहिए।
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 143 सत्ता सत्त्वं सद्वा सामान्यं द्रव्यमन्वयो वस्तु। अर्थो विधिरविशेषादेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥143॥
= सत्ता, सत्त्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि ये सब शब्द अविशेषरूपसे एकार्थवाचक हैं।
2. अन्वय व्यतिरेककी परस्पर सापेक्षता-देखें सप्तभंगी - 4।
3. अन्वय द्रव्यार्थि नय-देखें नय - IV.2।