आतप: Difference between revisions
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<p> सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/24/296 आपत आदित्यादिनिमित्त उष्णप्रकाशलक्षणः</p> | <p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/24/296 आपत आदित्यादिनिमित्त उष्णप्रकाशलक्षणः</p> | ||
<p>= जो सूर्यके निमित्तसे उष्ण प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं। </p> | <p class="HindiText">= जो सूर्यके निमित्तसे उष्ण प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं। </p> | ||
<p>(राजवार्तिक अध्याय 5/24/18/20/489) ( धवला पुस्तक 6/1-9-1,28/60/4)</p> | <p>(राजवार्तिक अध्याय 5/24/18/20/489) ( धवला पुस्तक 6/1-9-1,28/60/4)</p> | ||
<p>राजवार्तिक अध्याय 56/24/1/485/16 असद्वेद्योदयाद् आतपत्यात्मानम्, आतप्यतेऽनेन, आतपनमात्रं वा आतपः। </p> | <p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 56/24/1/485/16 असद्वेद्योदयाद् आतपत्यात्मानम्, आतप्यतेऽनेन, आतपनमात्रं वा आतपः। </p> | ||
<p>= असाता वेदनीय के उदयसे अपने स्वरूपको जो तपाता है, या जिसके द्वारा तपाया जाता है, या आतपन मात्रको आतप कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= असाता वेदनीय के उदयसे अपने स्वरूपको जो तपाता है, या जिसके द्वारा तपाया जाता है, या आतपन मात्रको आतप कहते हैं।</p> | ||
<p> तत्त्वार्थसार अधिकार 3/71 आतपनोऽपि प्रकाशः स्यादुष्णश्चादित्यकारण।...।</p> | <p class="SanskritText">तत्त्वार्थसार अधिकार 3/71 आतपनोऽपि प्रकाशः स्यादुष्णश्चादित्यकारण।...।</p> | ||
<p>= सूर्य से जो उष्णतायुक्त प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= सूर्य से जो उष्णतायुक्त प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं।</p> | ||
<p> गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 33 मूलुण्हपहा अग्गो आदावो होदि उण्हसहियपहा। आइच्चे तेरिच्छे उण्हूणपहा हु उज्जोत्तो ॥33॥</p> | <p class="SanskritText">गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 33 मूलुण्हपहा अग्गो आदावो होदि उण्हसहियपहा। आइच्चे तेरिच्छे उण्हूणपहा हु उज्जोत्तो ॥33॥</p> | ||
<p>= अग्नि है सो मूल ही उष्ण प्रभा सहित है, तातैं वाकैं स्पर्शका भेद उष्णताका उदय जानना बहुरि जाकी प्रभा हो उष्ण होई ताकैं आतप प्रकृतिका उदय जानना, सौ सूर्यका बिंब विषैं ऊपजैं ऐसे बादर पर्याप्त पृथ्वीकायके तिर्यंच जीव तिन हींकैं आतप प्रकृतिका उदय है।</p> | <p class="HindiText">= अग्नि है सो मूल ही उष्ण प्रभा सहित है, तातैं वाकैं स्पर्शका भेद उष्णताका उदय जानना बहुरि जाकी प्रभा हो उष्ण होई ताकैं आतप प्रकृतिका उदय जानना, सौ सूर्यका बिंब विषैं ऊपजैं ऐसे बादर पर्याप्त पृथ्वीकायके तिर्यंच जीव तिन हींकैं आतप प्रकृतिका उदय है।</p> | ||
<p> द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 16/53 आतप आदित्यविमाने अन्यत्रापि सूर्यकान्तमणिविशेषादौ पृथ्वीकाये ज्ञातव्यः। </p> | <p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 16/53 आतप आदित्यविमाने अन्यत्रापि सूर्यकान्तमणिविशेषादौ पृथ्वीकाये ज्ञातव्यः। </p> | ||
<p>= सूर्यके बिम्ब आदिमें तथा सूर्यकांत विशेष मणि आदि पृथ्वीकायमें आतप जानना चाहिए।</p> | <p class="HindiText">= सूर्यके बिम्ब आदिमें तथा सूर्यकांत विशेष मणि आदि पृथ्वीकायमें आतप जानना चाहिए।</p> | ||
<p>2. आतप नामकर्मका लक्षण</p> | <p>2. आतप नामकर्मका लक्षण</p> | ||
<p> सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/391 यदुदयान्निवृत्तमातपनं तदातपनाम।</p> | <p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/391 यदुदयान्निवृत्तमातपनं तदातपनाम।</p> | ||
<p>= जिसके उदयसे शरीरमें आतपकी प्राप्ति होती है, वह आतप नामकर्म है। </p> | <p class="HindiText">= जिसके उदयसे शरीरमें आतपकी प्राप्ति होती है, वह आतप नामकर्म है। </p> | ||
<p>(राजवार्तिक अध्याय 8/11/15/578), ( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/21), ( धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/60/4), ( धवला पुस्तक 13/5,5,101/365/1)</p> | <p>(राजवार्तिक अध्याय 8/11/15/578), ( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/21), ( धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/60/4), ( धवला पुस्तक 13/5,5,101/365/1)</p> | ||
<p>3. आतप तेज व उद्योतमें अन्तर - देखें [[ उदय#4 | उदय - 4]]।</p> | <p>3. आतप तेज व उद्योतमें अन्तर - देखें [[ उदय#4 | उदय - 4]]।</p> | ||
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Revision as of 13:47, 10 July 2020
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/24/296 आपत आदित्यादिनिमित्त उष्णप्रकाशलक्षणः
= जो सूर्यके निमित्तसे उष्ण प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं।
(राजवार्तिक अध्याय 5/24/18/20/489) ( धवला पुस्तक 6/1-9-1,28/60/4)
राजवार्तिक अध्याय 56/24/1/485/16 असद्वेद्योदयाद् आतपत्यात्मानम्, आतप्यतेऽनेन, आतपनमात्रं वा आतपः।
= असाता वेदनीय के उदयसे अपने स्वरूपको जो तपाता है, या जिसके द्वारा तपाया जाता है, या आतपन मात्रको आतप कहते हैं।
तत्त्वार्थसार अधिकार 3/71 आतपनोऽपि प्रकाशः स्यादुष्णश्चादित्यकारण।...।
= सूर्य से जो उष्णतायुक्त प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं।
गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 33 मूलुण्हपहा अग्गो आदावो होदि उण्हसहियपहा। आइच्चे तेरिच्छे उण्हूणपहा हु उज्जोत्तो ॥33॥
= अग्नि है सो मूल ही उष्ण प्रभा सहित है, तातैं वाकैं स्पर्शका भेद उष्णताका उदय जानना बहुरि जाकी प्रभा हो उष्ण होई ताकैं आतप प्रकृतिका उदय जानना, सौ सूर्यका बिंब विषैं ऊपजैं ऐसे बादर पर्याप्त पृथ्वीकायके तिर्यंच जीव तिन हींकैं आतप प्रकृतिका उदय है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 16/53 आतप आदित्यविमाने अन्यत्रापि सूर्यकान्तमणिविशेषादौ पृथ्वीकाये ज्ञातव्यः।
= सूर्यके बिम्ब आदिमें तथा सूर्यकांत विशेष मणि आदि पृथ्वीकायमें आतप जानना चाहिए।
2. आतप नामकर्मका लक्षण
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/391 यदुदयान्निवृत्तमातपनं तदातपनाम।
= जिसके उदयसे शरीरमें आतपकी प्राप्ति होती है, वह आतप नामकर्म है।
(राजवार्तिक अध्याय 8/11/15/578), ( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/21), ( धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/60/4), ( धवला पुस्तक 13/5,5,101/365/1)
3. आतप तेज व उद्योतमें अन्तर - देखें उदय - 4।