आयुकर्म: Difference between revisions
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Revision as of 19:09, 17 July 2020
(1) आठ प्रकार के कर्मों में पांचवें प्रकार का कर्म । यह सुदृढ़ बेड़ी के समान जीव को किसी एक पर्याय में रोके रहता है । यह जीवों को मन चाहे स्थान पर नहीं जाने देता । यह दुःख, शोक आदि अशुभ वेदनाओं की खान है । इसकी उत्कष्ट स्थिति तैंतीस सागर प्रमाण तथा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और मध्यम स्थिति विविध रूप की होती है । हरिवंशपुराण 3. 97, 58.215-218, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.151, 158,160 उत्कृष्ट रूप से पृथिवीकायिक जीवों की आयु बाईस हजार वर्ष, जलकायिक की उत्कृष्ट आयु सात हजार वर्ष, वायुकायिक की तीन हजार वर्ष, तेजस्कायिक की तीन दिन रात, वनस्पतिकायिक की दस हजार वर्ष, दो इन्द्रिय की बारह वर्ष, तीन इन्द्रिय की उनचास दिन, चार इन्द्रिय की छ: मास, पक्षी की बहत्तर हजार वर्ष, साँप की बयालीस हजार वर्ष, छाती से सरकने वाले जीवों की नौ पूर्वांग, महापुराण तथा मत्स्य जीवों की एक करोड़ वर्ष की होती है । हरिवंशपुराण 18. 64-69