आस्रवानुप्रेक्षा: Difference between revisions
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<p> बारह अनुप्रेक्षाओं में सातवीं अनुप्रेक्षा । राग आदि भावों के द्वारा पुद्गल | <p> बारह अनुप्रेक्षाओं में सातवीं अनुप्रेक्षा । राग आदि भावों के द्वारा पुद्गल पिंड कर्मरूप होकर आते और दुःख देते हैं । इसी से जीव अनंत संसार-सागर में डूबता है । पाँच प्रकार का मिथ्यात्व, बारह अविरति, पंद्रह प्रमाद और पच्चीस कषाय इस प्रकार कुछ सत्तावन कर्मास्रव के कारण होते हैं । दर्शन, ज्ञान, चारित्र से इस आस्रव को रोका जा सकता है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 14.238-239, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 25.99-101 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11.64-73 </span>देखें [[ अनुप्रेक्षा ]]।</p> | ||
Revision as of 16:19, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
देखें अनुप्रेक्षा
पुराणकोष से
बारह अनुप्रेक्षाओं में सातवीं अनुप्रेक्षा । राग आदि भावों के द्वारा पुद्गल पिंड कर्मरूप होकर आते और दुःख देते हैं । इसी से जीव अनंत संसार-सागर में डूबता है । पाँच प्रकार का मिथ्यात्व, बारह अविरति, पंद्रह प्रमाद और पच्चीस कषाय इस प्रकार कुछ सत्तावन कर्मास्रव के कारण होते हैं । दर्शन, ज्ञान, चारित्र से इस आस्रव को रोका जा सकता है । पद्मपुराण 14.238-239, पांडवपुराण 25.99-101 वीरवर्द्धमान चरित्र 11.64-73 देखें अनुप्रेक्षा ।