उपसमुद्र: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">महापुराण सर्ग संख्या 28/46 बहिः ससुद्रमुद्रिक्तं द्वैप्यं निम्नोपगं जलम्। समुदस्येव निष्यंदम् अब्धेराराद् व्यलोकयत् ।46।</p> | |||
<p>= उन्होंने (भारत चक्रवर्तीकी सेनाने) समुद्रके समीप ही समुद्रसे बाहर उछल-उछल कर गहरे स्थान में इकट्ठे हुए द्वीप सम्बन्धी उस जलको देखा जो कि समुद्रके निष्यंदके समान मालूम होता था। अर्थात् समुद्रका जो जल उछल-उछल कर समुद्र के समीप ही किसी गहरे स्थानमें इकट्ठा हो जाता है वही उपसमुद्र कहलाता है।</p> | <p class="HindiText">= उन्होंने (भारत चक्रवर्तीकी सेनाने) समुद्रके समीप ही समुद्रसे बाहर उछल-उछल कर गहरे स्थान में इकट्ठे हुए द्वीप सम्बन्धी उस जलको देखा जो कि समुद्रके निष्यंदके समान मालूम होता था। अर्थात् समुद्रका जो जल उछल-उछल कर समुद्र के समीप ही किसी गहरे स्थानमें इकट्ठा हो जाता है वही उपसमुद्र कहलाता है।</p> | ||
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Revision as of 13:48, 10 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
महापुराण सर्ग संख्या 28/46 बहिः ससुद्रमुद्रिक्तं द्वैप्यं निम्नोपगं जलम्। समुदस्येव निष्यंदम् अब्धेराराद् व्यलोकयत् ।46।
= उन्होंने (भारत चक्रवर्तीकी सेनाने) समुद्रके समीप ही समुद्रसे बाहर उछल-उछल कर गहरे स्थान में इकट्ठे हुए द्वीप सम्बन्धी उस जलको देखा जो कि समुद्रके निष्यंदके समान मालूम होता था। अर्थात् समुद्रका जो जल उछल-उछल कर समुद्र के समीप ही किसी गहरे स्थानमें इकट्ठा हो जाता है वही उपसमुद्र कहलाता है।
पुराणकोष से
समुद्र से उछलकर द्वीप में आया अलंघनीय एवं गहरा जल । इससे द्वीप के चारों ओर का समीपवर्ती भाग आवृत हो जाता है । महापुराण 28.48