ऋषि: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 886 समणोत्ति संजदोत्ति य रिसिमुणिसाधुत्ति वीदरागोत्ति। णामाणि सुविहिदाणं अणगार भदंत दंतोत्ति ।886।</p> | |||
<p>= उत्तम चारित्रवाले मुनियोंके ये नाम हैं-श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु वीतराग, अनगार, भदंत, दान्त, यति।</p> | <p class="HindiText">= उत्तम चारित्रवाले मुनियोंके ये नाम हैं-श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु वीतराग, अनगार, भदंत, दान्त, यति।</p> | ||
<p> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 249 में उद्धृत-"स्यादृषिः। प्रसृतर्द्धिरारूढः।"</p> | <p class="SanskritText">प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 249 में उद्धृत-"स्यादृषिः। प्रसृतर्द्धिरारूढः।"</p> | ||
<p>= ऋद्धि प्राप्त साधुको ऋषि कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= ऋद्धि प्राप्त साधुको ऋषि कहते हैं।</p> | ||
<p>( चारित्रसार पृष्ठ 47/1 में उद्धृत) ( सागार धर्मामृत अधिकार 7/20 में उद्धृत)</p> | <p>( चारित्रसार पृष्ठ 47/1 में उद्धृत) ( सागार धर्मामृत अधिकार 7/20 में उद्धृत)</p> | ||
<p>2. ऋषिके भेद व उनके लक्षण</p> | <p>2. ऋषिके भेद व उनके लक्षण</p> | ||
<p> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 249 में उद्धृत-राजाब्रह्मा च देवपरम इति ऋषिर्विक्रियाक्षीणशक्तिप्राप्तो बुद्ध्यौषधीशो वियदयनपटुर्विश्ववेदी क्रमेण।"</p> | <p class="SanskritText">प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 249 में उद्धृत-राजाब्रह्मा च देवपरम इति ऋषिर्विक्रियाक्षीणशक्तिप्राप्तो बुद्ध्यौषधीशो वियदयनपटुर्विश्ववेदी क्रमेण।"</p> | ||
<p>= ऋषि चार प्रकारके कहे गये हैं-राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि और परमर्षि। तिनमें विक्रिया और अक्षीण (क्षेत्र) शक्ति प्राप्त साधु राजर्षि कहलाते हैं; बुद्धि व औषधि ऋद्धियुक्त साधु ब्रह्मर्षि कहलाते हैं; आकाशगामी ऋद्धि सम्पन्न देवर्षि और विश्ववेदी केवल ज्ञानी अर्हंत भगवान् परमर्षि कहलाते हैं।</p> | <p class="HindiText">= ऋषि चार प्रकारके कहे गये हैं-राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि और परमर्षि। तिनमें विक्रिया और अक्षीण (क्षेत्र) शक्ति प्राप्त साधु राजर्षि कहलाते हैं; बुद्धि व औषधि ऋद्धियुक्त साधु ब्रह्मर्षि कहलाते हैं; आकाशगामी ऋद्धि सम्पन्न देवर्षि और विश्ववेदी केवल ज्ञानी अर्हंत भगवान् परमर्षि कहलाते हैं।</p> | ||
<p>( चारित्रसार पृष्ठ 47/1 में उद्धृत), ( सागार धर्मामृत अधिकार 7/20 में उद्धृत)</p> | <p>( चारित्रसार पृष्ठ 47/1 में उद्धृत), ( सागार धर्मामृत अधिकार 7/20 में उद्धृत)</p> | ||
<p>3. अन्य सम्बन्धित विषय</p> | <p>3. अन्य सम्बन्धित विषय</p> | ||
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<p>• पिछले कालके भट्टारक भी अपनेको ऋषि लिखने लग गये थे - जै. 2/91</p> | <p>• पिछले कालके भट्टारक भी अपनेको ऋषि लिखने लग गये थे - जै. 2/91</p> | ||
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Revision as of 13:48, 10 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 886 समणोत्ति संजदोत्ति य रिसिमुणिसाधुत्ति वीदरागोत्ति। णामाणि सुविहिदाणं अणगार भदंत दंतोत्ति ।886।
= उत्तम चारित्रवाले मुनियोंके ये नाम हैं-श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु वीतराग, अनगार, भदंत, दान्त, यति।
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 249 में उद्धृत-"स्यादृषिः। प्रसृतर्द्धिरारूढः।"
= ऋद्धि प्राप्त साधुको ऋषि कहते हैं।
( चारित्रसार पृष्ठ 47/1 में उद्धृत) ( सागार धर्मामृत अधिकार 7/20 में उद्धृत)
2. ऋषिके भेद व उनके लक्षण
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 249 में उद्धृत-राजाब्रह्मा च देवपरम इति ऋषिर्विक्रियाक्षीणशक्तिप्राप्तो बुद्ध्यौषधीशो वियदयनपटुर्विश्ववेदी क्रमेण।"
= ऋषि चार प्रकारके कहे गये हैं-राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि और परमर्षि। तिनमें विक्रिया और अक्षीण (क्षेत्र) शक्ति प्राप्त साधु राजर्षि कहलाते हैं; बुद्धि व औषधि ऋद्धियुक्त साधु ब्रह्मर्षि कहलाते हैं; आकाशगामी ऋद्धि सम्पन्न देवर्षि और विश्ववेदी केवल ज्ञानी अर्हंत भगवान् परमर्षि कहलाते हैं।
( चारित्रसार पृष्ठ 47/1 में उद्धृत), ( सागार धर्मामृत अधिकार 7/20 में उद्धृत)
3. अन्य सम्बन्धित विषय
• मुख्य ऋषि गणधर हैं-देखें गणधर ।
• प्रत्येक तीर्थंकरके तीर्थमें ऋषियोंका प्रमाण-देखें तीर्थङ्कर - 5।
• पिछले कालके भट्टारक भी अपनेको ऋषि लिखने लग गये थे - जै. 2/91
पुराणकोष से
ऋद्धिधारी मुनि । ये परिग्रह रहित होकर तप करते हुए जीव रक्षा में रत रहते हैं । महापुराण 2.27-28,21.220, महापुराण 11. 58, 119.61, हरिवंशपुराण 3.61