काललब्धि: Difference between revisions
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> काल आदि पांच लब्धियों में एक लब्धि-कार्य | <p> काल आदि पांच लब्धियों में एक लब्धि-कार्य संपन्न होने का समय । विशुद्ध सम्यग्दर्शन की उपलब्धि का बहिरंग कारण । इसके बिना जीवों को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं होती । भव्य जीव को भी इसके बिना संसार में भ्रमण करना पड़ता है । इसका निमित्त पाकर जीव अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण रूप तीन परिणामों से मिथ्यात्व आदि सात प्रकृतियों का उपशम करता है तथा संसार की परिपाटी का विच्छेद कर उपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है । <span class="GRef"> महापुराण 9.115-116, 15.53, 17.43, 47.386, 48.84, 63. 314-315 </span></p> | ||
Revision as of 16:21, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == देखें नियति - 2।
पुराणकोष से
काल आदि पांच लब्धियों में एक लब्धि-कार्य संपन्न होने का समय । विशुद्ध सम्यग्दर्शन की उपलब्धि का बहिरंग कारण । इसके बिना जीवों को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं होती । भव्य जीव को भी इसके बिना संसार में भ्रमण करना पड़ता है । इसका निमित्त पाकर जीव अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण रूप तीन परिणामों से मिथ्यात्व आदि सात प्रकृतियों का उपशम करता है तथा संसार की परिपाटी का विच्छेद कर उपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है । महापुराण 9.115-116, 15.53, 17.43, 47.386, 48.84, 63. 314-315