कालानुयोग - ज्ञान मार्गणा: Difference between revisions
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<td width="121" valign="top"><p>इतने काल पश्चात् मरण</p></td> | <td width="121" valign="top"><p>इतने काल पश्चात् मरण</p></td> |
Revision as of 19:10, 17 July 2020
7. ज्ञान मार्गणा
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
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प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
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नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
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सू. |
सू. |
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सू. |
सू. |
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|
मति श्रुतअज्ञान |
|
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31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
133-135 |
अनन्त |
अनादि अनन्त व अनादि सान्त |
अनन्त |
जघन्यवत् |
मति श्रुतज्ञान सादि सान्त |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
136-137 |
अन्तर्मु0 |
ज्ञान परिवर्तन |
कुछ कम अर्ध पु0परि0 |
सम्यक्त्व से मिथ्यात्व फिर सम्यक्त्व देव नारकी में उपरोक्त प्रकार |
विभंग सामान्य |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
139-140 |
1 समय |
उप0सम्य0 देव नारकीद्विती.समय सासा.हो मरे। |
अन्तर्मु0कम 33सा. |
|
विभंग (मनु0तिर्य0) |
|
|
धवला/9/397 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
धवला/9/397 |
1 समय |
औदारिक शरीर की संघातनपरिशातन कृति |
अन्तर्मुहूर्त |
|
मतिश्रुत अवधिज्ञान |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
142-143 |
अन्तर्मु0 |
देव नारकी सम्यक्त्वी हो पुन: मिथ्या। |
66 सागर+4पूर्व को0 |
(देखो काल/5) |
मन:पर्यय |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
145-146 |
अन्तर्मु0 |
इतने काल पश्चात् मरण |
8 वर्ष कम 1को0पू0 |
8 वर्ष में दीक्षा लेकर शेष उत्कृष्ट आयु पर्यन्त |
केवलज्ञान |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
145-146 ( कषायपाहुड़ ) |
अन्तर्मु0 |
इतने काल पश्चात् मरण |
अन्तर्मुहूर्त |
" (देखें दर्शन - 3.2) |
मतिश्रुत अज्ञान |
1-2 |
260-261 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
260-261 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
विभंग ज्ञान |
1 |
262 |
|
|
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
263-264 |
|
अन्तर्मु0 |
गुणस्थान परिवर्तन |
33 सागर से अन्तर्मु0कम अन्तर्मुहूर्त |
सप्तम पृथिवी की अपेक्षा मनुष्य तिर्यंच की अपेक्षा |
|
2 |
265 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
265 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
मतिश्रुतज्ञान |
4-12 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
अवधिज्ञान |
1-4 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
5 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
— |
मूलोघवत् |
— |
4 अंत0कम 1 को.पू. |
ओघ से 1 अन्तर्मु0और भी कम है। क्योंकि सम्यक्त्व अवधि धारने में 1 अन्तर्मु0 लगा |
|
6-12 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
|
— |
मूलोघवत् |
— |
|
मन:पर्यय |
6-12 |
267 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
267 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
केवल |
13-14 |
268 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
268 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|