कालुष्य: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <p> पंचास्तिकाय/138 <span class="PrakritGatha">कोधो व जदा माणो माया लोभो व चित्तमासेज्ज। जीवस्स कुणदि खोट्टं कलुसो त्ति य तं बुधा वेंति।138।</span>=<span class="HindiText">जब क्रोध, मान, माया, अथवा लोभ चित्त का आश्रय पाकर जीव को क्षोभ करते हैं, तब उसे ज्ञानी ‘कलुषता’ कहते हैं। </span></p> | ||
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/66/130 <span class="SanskritText">क्रोधमानमायालोभाभिधानैश्चतुर्भि: कषायै: क्षुभितं चित्तं कालुष्यम्। </span>=<span class="HindiText">क्रोध, मान, माया और लोभ नामक चार कषायों से क्षुब्ध हुआ चित्त सो कलुषता है। </span> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 19:10, 17 July 2020
पंचास्तिकाय/138 कोधो व जदा माणो माया लोभो व चित्तमासेज्ज। जीवस्स कुणदि खोट्टं कलुसो त्ति य तं बुधा वेंति।138।=जब क्रोध, मान, माया, अथवा लोभ चित्त का आश्रय पाकर जीव को क्षोभ करते हैं, तब उसे ज्ञानी ‘कलुषता’ कहते हैं।
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/66/130 क्रोधमानमायालोभाभिधानैश्चतुर्भि: कषायै: क्षुभितं चित्तं कालुष्यम्। =क्रोध, मान, माया और लोभ नामक चार कषायों से क्षुब्ध हुआ चित्त सो कलुषता है।