कुलभूषण: Difference between revisions
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<li>नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें [[ इतिहास ]]) आविद्ध करण पद्मनन्दि कौमारदेव सिद्धान्तिक के शिष्य तथा कुलचन्द्र के गुरु थे। समय−1080−1155 (ई॰ 1023−1078) (ष.ख./2 H. L. Jain) देखें [[ इतिहास ]]/7/5। </li> | <li>नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें [[ इतिहास ]]) आविद्ध करण पद्मनन्दि कौमारदेव सिद्धान्तिक के शिष्य तथा कुलचन्द्र के गुरु थे। समय−1080−1155 (ई॰ 1023−1078) (ष.ख./2 H. L. Jain) देखें [[ इतिहास ]]/7/5। </li> | ||
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Revision as of 19:10, 17 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- परमात्मप्रकाश/39/ श्लोक....वंशधर पर्वत पर ध्यानस्थ इन पर अग्निप्रभ देव ने घोर उपसर्ग किया (15) वनवासी राम के आने पर देव तिरोहित हो गया (73) तदन्नतर इनको केवलज्ञान की प्राप्ति हो गयी (75)।
- नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें इतिहास ) आविद्ध करण पद्मनन्दि कौमारदेव सिद्धान्तिक के शिष्य तथा कुलचन्द्र के गुरु थे। समय−1080−1155 (ई॰ 1023−1078) (ष.ख./2 H. L. Jain) देखें इतिहास /7/5।
पुराणकोष से
तीर्थंकर मुनिसुव्रत के शासनकाल में उत्पन्न सिद्धार्थनगर के राजा क्षेमंकर और उसकी महादेवी विमला का द्वितीय पुत्र तथा देशभूषण का अनुज । ये दोनों भाई विद्या प्राप्त करने में इतने दत्तचित्त रहते थे कि परिवार के लोगों का भी इनको पता नहीं था । एक दिन इन्होंने एक झरोखे से देखती एक कन्या देखी । कामासक्त होकर दोनों उसकी प्राप्ति के लिए एक-दूसरे को मारने को तैयार हुए ही थे कि बन्दीजनों से उन्हें ज्ञात हुआ कि जिसके लिए वे दोनों लड़ रहे हैं वह उनकी ही बहिन है । यह जानकर अपने भाई सहित यह विरक्त हो गया । दोनों भाइयों ने दिगम्बरी दीक्षा धारण कर ली तथा आकाश-गामिनी ऋद्धि प्राप्त कर अनेक तीर्थ क्षेत्रों में इन्होंने विहार किया । पद्मपुराण 39.158-175 तप करते हुए इन्हें सर्प और बिच्छुओं ने घेर लिया था । राम और लक्ष्मण ने सर्प आदि को हटाकर इनकी पूजा की थी । अग्निप्रभ देव के द्वारा उपसर्ग किये जाने पर राम और लक्ष्मण ने ही इनके इस उपसर्ग का निवारण किया था । दोनों को केवलज्ञान की उपलब्धि हुई । पद्मपुराण 39.39-45, 73-75, 61. 16-17