आवरक व आवरण: Difference between revisions
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[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ८/४/३८०/३ आवृणोत्याव्रियतेऽनेनेति वा आवरणम्।= जो आवृत करता है या जिसके द्वारा आवृत किया जाता है वह आवरण कहलाता है। ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ३३/२७/१०)[[धवला]] पुस्तक संख्या ६/१,९-१,५/८/५ अप्पणो विरोहिदव्वसण्णिहाणे संते वि जं णिम्मूलदो ण विणस्सदि, तमावरिज्जाणामं इदरं चावरयं।= अपने विरोधी द्रव्यके सन्निधान अर्थात् सामीप्य होनेपर जो निर्मूलतः नहीं विनष्ट होता, उसे आव्रियमाण कहते हैं, और दूसरे अर्थात् आवरण करनेवाले विरोधी द्रव्यको आवरक कहते हैं। | [[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ८/४/३८०/३ आवृणोत्याव्रियतेऽनेनेति वा आवरणम्।<br>= जो आवृत करता है या जिसके द्वारा आवृत किया जाता है वह आवरण कहलाता है। <br>([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ३३/२७/१०)<br>[[धवला]] पुस्तक संख्या ६/१,९-१,५/८/५ अप्पणो विरोहिदव्वसण्णिहाणे संते वि जं णिम्मूलदो ण विणस्सदि, तमावरिज्जाणामं इदरं चावरयं।<br>= अपने विरोधी द्रव्यके सन्निधान अर्थात् सामीप्य होनेपर जो निर्मूलतः नहीं विनष्ट होता, उसे आव्रियमाण कहते हैं, और दूसरे अर्थात् आवरण करनेवाले विरोधी द्रव्यको आवरक कहते हैं।<br>[[Category:आ]] <br>[[Category:सर्वार्थसिद्धि]] <br>[[Category:गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] <br>[[Category:धवला]] <br> |
Revision as of 04:00, 15 February 2009
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ८/४/३८०/३ आवृणोत्याव्रियतेऽनेनेति वा आवरणम्।
= जो आवृत करता है या जिसके द्वारा आवृत किया जाता है वह आवरण कहलाता है।
(गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या ३३/२७/१०)
धवला पुस्तक संख्या ६/१,९-१,५/८/५ अप्पणो विरोहिदव्वसण्णिहाणे संते वि जं णिम्मूलदो ण विणस्सदि, तमावरिज्जाणामं इदरं चावरयं।
= अपने विरोधी द्रव्यके सन्निधान अर्थात् सामीप्य होनेपर जो निर्मूलतः नहीं विनष्ट होता, उसे आव्रियमाण कहते हैं, और दूसरे अर्थात् आवरण करनेवाले विरोधी द्रव्यको आवरक कहते हैं।