आश्रम: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा स...) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति | तात्पर्यवृत्ति ]] टीका / गाथा संख्या ५५ विशुद्धज्ञानदर्शनप्रधानाश्रमम्। | [[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति | तात्पर्यवृत्ति ]] टीका / गाथा संख्या ५५ विशुद्धज्ञानदर्शनप्रधानाश्रमम्। | ||
= विशुद्ध ज्ञान व दर्शनकी प्रधानता रूप आश्रम..अर्थात् ज्ञान दर्शनकी प्रधानता ही आश्रमकी लक्षण है। | |||
२. चतुः आश्रम निर्देश | |||
[[महापुराण]] सर्ग संख्या ३९/१५२ ब्रह्मचारी गृहस्थश्च वानप्रस्थोऽथ भिक्षुकः। इत्याश्रमास्तु जैनानामुत्तरोत्तरशुद्धितः ।।१५२।। | |||
= ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और भिक्षुक ये जैनियोंके चार आश्रम हैं जो कि उत्तरोत्तर विशुद्धिको प्राप्त होते हैं। | |||
([[चारित्रसार]] पृष्ठ संख्या ४१/५ में उपासकाध्ययनसे उद्धृत) ([[सागार धर्मामृत]] अधिकार संख्या ७/२०) |
Revision as of 08:45, 8 May 2009
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा संख्या ५५ विशुद्धज्ञानदर्शनप्रधानाश्रमम्। = विशुद्ध ज्ञान व दर्शनकी प्रधानता रूप आश्रम..अर्थात् ज्ञान दर्शनकी प्रधानता ही आश्रमकी लक्षण है। २. चतुः आश्रम निर्देश महापुराण सर्ग संख्या ३९/१५२ ब्रह्मचारी गृहस्थश्च वानप्रस्थोऽथ भिक्षुकः। इत्याश्रमास्तु जैनानामुत्तरोत्तरशुद्धितः ।।१५२।। = ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और भिक्षुक ये जैनियोंके चार आश्रम हैं जो कि उत्तरोत्तर विशुद्धिको प्राप्त होते हैं। (चारित्रसार पृष्ठ संख्या ४१/५ में उपासकाध्ययनसे उद्धृत) (सागार धर्मामृत अधिकार संख्या ७/२०)