|
|
Line 1: |
Line 1: |
| <p id="1"> (1) सदैव पुष्पित वृक्षों से युक्त मेरु पर्वत का एक वन । तीर्थंकरों के जन्माभिषेक के लिए पाण्डुकशिला इसी वन में बनी हुई है । यहाँ जिन प्रतिमाओं की वन्दना के लिए देव आते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 5.183, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 12.84-85, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 8.38,44, 190, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2. 123 </span>देखें [[ पाण्डुकवन ]]</p> | | #REDIRECT [[पांडुक]] |
| <p id="2">(2) पाण्डुक वन का एक भाग । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.308-309 </span></p>
| |
| <p id="3">(3) विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी का बाईसवाँ नगर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22. 88 </span></p>
| |
| <p id="4">(4) चक्रवर्ती की नौ निधियों में धान्य तथा रसों की उत्पादिनी निधि । यह भरतेश को प्राप्त थी । <span class="GRef"> महापुराण 37.73, 78, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11. 116 </span></p>
| |
| <p id="5">(5) राजगृह की पाँच पहाड़ियों में एक पहाड़ी । यह आकार में गोल है तथा पूर्व और उत्तर दिशा के अन्तराल में सुशोभित है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.55 </span></p>
| |
| <p id="6">(6) पाण्डुक स्तम्भ के पास बैठने वाले विद्याधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 26.17 </span></p>
| |
| <p id="7">(7) कुण्डलगिरि के महेन्द्रकूट का निवासी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.694 </span></p>
| |
|
| |
| | |
| <noinclude>
| |
| [[ पाण्डु | पूर्व पृष्ठ ]]
| |
| | |
| [[ पाण्डुकम्बला | अगला पृष्ठ ]]
| |
| | |
| </noinclude>
| |
| [[Category: पुराण-कोष]]
| |
| [[Category: प]]
| |