पृच्छाविधि: Difference between revisions
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<p> | <p> धवला 13/5,5/50/285/6 <span class="SanskritText">द्रव्य-गुण-पर्यय-विधि-निषेधविषयप्रश्नः पृच्छा, तस्याः क्रमः अक्रमश्च अक्रमप्रायश्चित्तं च विधीयते अस्मिन्निति पृच्छाविधिः श्रुतम्। अथवा पृष्टोऽर्थः पृच्छा, सा विधीयते निरुप्यतेऽस्मिन्निति पृच्छाविधिः श्रुतम्। एवं पृच्छाविधि त्ति गदं। विधानं विधिः, पृच्छायाः विधिः पृच्छाविधिः, स विशिष्यतेऽअनेनेति पृच्छाविधिविशेषः। अर्हदाचार्योपाध्याय-साधवोऽनेन प्रकारेण प्रष्टव्याः प्रश्नभङ्गाश्च इयन्त एवेति यतः सिद्धान्ते निरूप्यन्ते ततस्तस्य पृच्छाविधिविशेष इति संज्ञेत्युक्तं भवति।</span> = </p> | ||
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<li> <span class="HindiText">द्रव्य गुण और पर्याय के विधि निषेध विषयक प्रश्न का नाम पृच्छा है। उसके क्रम और अक्रम का तथा प्रायश्चित्त का जिसमें विधान किया जाता है वह पृच्छाविधि अर्थात् श्रुत है। </span></li> | <li> <span class="HindiText">द्रव्य गुण और पर्याय के विधि निषेध विषयक प्रश्न का नाम पृच्छा है। उसके क्रम और अक्रम का तथा प्रायश्चित्त का जिसमें विधान किया जाता है वह पृच्छाविधि अर्थात् श्रुत है। </span></li> |
Revision as of 19:12, 17 July 2020
धवला 13/5,5/50/285/6 द्रव्य-गुण-पर्यय-विधि-निषेधविषयप्रश्नः पृच्छा, तस्याः क्रमः अक्रमश्च अक्रमप्रायश्चित्तं च विधीयते अस्मिन्निति पृच्छाविधिः श्रुतम्। अथवा पृष्टोऽर्थः पृच्छा, सा विधीयते निरुप्यतेऽस्मिन्निति पृच्छाविधिः श्रुतम्। एवं पृच्छाविधि त्ति गदं। विधानं विधिः, पृच्छायाः विधिः पृच्छाविधिः, स विशिष्यतेऽअनेनेति पृच्छाविधिविशेषः। अर्हदाचार्योपाध्याय-साधवोऽनेन प्रकारेण प्रष्टव्याः प्रश्नभङ्गाश्च इयन्त एवेति यतः सिद्धान्ते निरूप्यन्ते ततस्तस्य पृच्छाविधिविशेष इति संज्ञेत्युक्तं भवति। =
- द्रव्य गुण और पर्याय के विधि निषेध विषयक प्रश्न का नाम पृच्छा है। उसके क्रम और अक्रम का तथा प्रायश्चित्त का जिसमें विधान किया जाता है वह पृच्छाविधि अर्थात् श्रुत है।
- अथवा पूछा गया अर्थ पृच्छा है, वह जिसमें विहित हो जाती है अर्थात् कही जाती है वह पृच्छाविधिश्रुत है। इस प्रकार पृच्छाविधि का कथन किया।
- विधान करना विधि है, पृच्छा की विधि पृच्छाविधि है। वह जिसके द्वारा विशेषित की जाती है वह पृच्छाविधिविशेष है। अरिहन्त, आचार्य, उपाध्याय और साधु इस प्रकार से पूछे जाने योग्य हैं तथा प्रश्नों के भेद इतने ही हैं; ये सब चूँकि सिद्धान्त में निरूपित किये जाते हैं अतः उसकी पृच्छा-विधिविशेष यह संज्ञा है, यह उक्त कथन का तात्पर्य है।