प्रभव: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1">(1) सुधर्माचार्य से प्राप्त श्रुत के अवधारक आचार्य । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.41-42 </span></p> | <p id="1">(1) सुधर्माचार्य से प्राप्त श्रुत के अवधारक आचार्य । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.41-42 </span></p> | ||
<p id="2">(2) ऐरावत क्षेत्र के शतद्वारपुर का निवासी सुमित्र का मित्र । सुमित्र ने इसे अपने राज्य का एक भाग देकर अपने समान राजा बना दिया था । यह सुमित्र की ही पत्नी वनमाला पर आसक्त हो गया था तथा उसकी पत्नी को इसने अपनी पत्नी बनाना चाहा था । मित्रभाव से सुमित्र ने वनमाला उसे अर्पित कर दी । जब वनमाला से उसका अपना परिचय पाया तो मित्र के साथ इसे अपना अनुचित व्यवहार समझकर यह ग्लानि से भर गया और आत्मघात के लिए तैयार हो गया था | <p id="2">(2) ऐरावत क्षेत्र के शतद्वारपुर का निवासी सुमित्र का मित्र । सुमित्र ने इसे अपने राज्य का एक भाग देकर अपने समान राजा बना दिया था । यह सुमित्र की ही पत्नी वनमाला पर आसक्त हो गया था तथा उसकी पत्नी को इसने अपनी पत्नी बनाना चाहा था । मित्रभाव से सुमित्र ने वनमाला उसे अर्पित कर दी । जब वनमाला से उसका अपना परिचय पाया तो मित्र के साथ इसे अपना अनुचित व्यवहार समझकर यह ग्लानि से भर गया और आत्मघात के लिए तैयार हो गया था परंतु इसके मित्र ने इसे ऐसा करने से रोक लिया । मरकर यह अनेक दुर्गतियों पाते हुए विश्वावसु की ज्योतिष्मती भार्या का शिखी नाम का पुत्र हुआ । आगे चलकर यही चमरेंद्र हुआ और इसने सुमित्र के जीव मधु को शूकरत्न भेंट किया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 12.22-25, 31, 35-49, 55 </span></p> | ||
<p id="3">(3) | <p id="3">(3) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.117 </span></p> | ||
Revision as of 16:28, 19 August 2020
(1) सुधर्माचार्य से प्राप्त श्रुत के अवधारक आचार्य । पद्मपुराण 1.41-42
(2) ऐरावत क्षेत्र के शतद्वारपुर का निवासी सुमित्र का मित्र । सुमित्र ने इसे अपने राज्य का एक भाग देकर अपने समान राजा बना दिया था । यह सुमित्र की ही पत्नी वनमाला पर आसक्त हो गया था तथा उसकी पत्नी को इसने अपनी पत्नी बनाना चाहा था । मित्रभाव से सुमित्र ने वनमाला उसे अर्पित कर दी । जब वनमाला से उसका अपना परिचय पाया तो मित्र के साथ इसे अपना अनुचित व्यवहार समझकर यह ग्लानि से भर गया और आत्मघात के लिए तैयार हो गया था परंतु इसके मित्र ने इसे ऐसा करने से रोक लिया । मरकर यह अनेक दुर्गतियों पाते हुए विश्वावसु की ज्योतिष्मती भार्या का शिखी नाम का पुत्र हुआ । आगे चलकर यही चमरेंद्र हुआ और इसने सुमित्र के जीव मधु को शूकरत्न भेंट किया । पद्मपुराण 12.22-25, 31, 35-49, 55
(3) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.117