प्रभाचंद्र: Difference between revisions
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<li> अकलंक भट्ट (ई. 620-680) के परवर्ती एक आचार्य जिन्होंने गृद्धपिच्छ कृत तत्त्वार्थ सूत्र के अनसुार एक द्वितीय तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की । (ती./3/300) । </li> | <li> अकलंक भट्ट (ई. 620-680) के परवर्ती एक आचार्य जिन्होंने गृद्धपिच्छ कृत तत्त्वार्थ सूत्र के अनसुार एक द्वितीय तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की । (ती./3/300) । </li> | ||
<li> राष्टकूट के नरेश गोविन्द तृ. के दो ताम्रपत्रों (शक 719-724) के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और पुष्पनन्दि के शिष्य थे । समय - लगभग शक 710-754 (ई. 788-832) । (जै. /2/113) । </li> | <li> राष्टकूट के नरेश गोविन्द तृ. के दो ताम्रपत्रों (शक 719-724) के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और पुष्पनन्दि के शिष्य थे । समय - लगभग शक 710-754 (ई. 788-832) । (जै. /2/113) । </li> | ||
<li | <li> महापुराण के कर्ता जिनसेन (ई. 818-878) से पूर्ववर्ती जो कुमारसेन के शिष्य थे । कृति - न्याय का ग्रन्थ ‘चन्द्रोदय’ . समय - ई. 797 (ह.पु./प्र.8/पं. पन्ना लाल) । </li> | ||
<li> नन्दिसंघ देशीयगण गोलाचार्य आग्नाय में आप पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य और आबिद्धकरण पद्मनन्दि कौमारदेव के सधर्मा थे । परीक्षामुख के कर्ता माणिक्यनन्दि आपके शिक्षा गुरु थे । कृतियें - प्रमेयकमल मार्तण्ड, न्याय कुमुद चन्द्र, तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण, शाकटायन न्यास, शब्दाम्भोज भास्कर, समाधितन्त्र टीका, आत्मानुशासन टीका, समयसार टीका, प्रवचनसार सरोज भास्कर, पञ्चास्तिकाय प्रदीप, लघु-द्रव्यसंग्रह वृत्ति, | <li> नन्दिसंघ देशीयगण गोलाचार्य आग्नाय में आप पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य और आबिद्धकरण पद्मनन्दि कौमारदेव के सधर्मा थे । परीक्षामुख के कर्ता माणिक्यनन्दि आपके शिक्षा गुरु थे । कृतियें - प्रमेयकमल मार्तण्ड, न्याय कुमुद चन्द्र, तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण, शाकटायन न्यास, शब्दाम्भोज भास्कर, समाधितन्त्र टीका, आत्मानुशासन टीका, समयसार टीका, प्रवचनसार सरोज भास्कर, पञ्चास्तिकाय प्रदीप, लघु-द्रव्यसंग्रह वृत्ति, महापुराण टिप्पणी, गद्य कथाकोष, क्रिया-कलाप टीका और किन्हीं विद्वानों के अनुसार रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका भी . समय - पं. महेन्द्र कुमार के अनुसार वि. 1037-1122; पं. कैलाश चन्द्र जी के अनुसार ई. 950-1020 । (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]]); (जै/2/348), 1/388); (ती./3/49, 50) । </li> | ||
<li> नन्दिसंघ देशीयगण में मेघचन्द्र त्रैविद्य द्वि. के शिष्य और वीरनन्दि व शुभचन्द्र के सहधर्मा । (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]]) । </li> | <li> नन्दिसंघ देशीयगण में मेघचन्द्र त्रैविद्य द्वि. के शिष्य और वीरनन्दि व शुभचन्द्र के सहधर्मा । (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]]) । </li> | ||
<li> सेन गण के भट्टारक बाल चन्द्र के शिष्य । कृतियें - सिद्धान्तरसार की कन्नड़ टीका और पं. कैलाश चन्द जी के अनुसार रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका । समय - वि. श. 13 (ई. 1185-1243) । </li> | <li> सेन गण के भट्टारक बाल चन्द्र के शिष्य । कृतियें - सिद्धान्तरसार की कन्नड़ टीका और पं. कैलाश चन्द जी के अनुसार रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका । समय - वि. श. 13 (ई. 1185-1243) । </li> |
Revision as of 13:50, 10 July 2020
इस नाम के अनेकों आचार्य हुए हैं -
- नन्दिसंघ बलात्कारगण की गुर्वावली के अनुसार लोकचन्द्र के शिष्य और नेमिचन्द्र के गुरु । समय - शक 453-478 (ई. 531-556) । (देखें इतिहास - 7.2) ।
- अकलंक भट्ट (ई. 620-680) के परवर्ती एक आचार्य जिन्होंने गृद्धपिच्छ कृत तत्त्वार्थ सूत्र के अनसुार एक द्वितीय तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की । (ती./3/300) ।
- राष्टकूट के नरेश गोविन्द तृ. के दो ताम्रपत्रों (शक 719-724) के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और पुष्पनन्दि के शिष्य थे । समय - लगभग शक 710-754 (ई. 788-832) । (जै. /2/113) ।
- महापुराण के कर्ता जिनसेन (ई. 818-878) से पूर्ववर्ती जो कुमारसेन के शिष्य थे । कृति - न्याय का ग्रन्थ ‘चन्द्रोदय’ . समय - ई. 797 (ह.पु./प्र.8/पं. पन्ना लाल) ।
- नन्दिसंघ देशीयगण गोलाचार्य आग्नाय में आप पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य और आबिद्धकरण पद्मनन्दि कौमारदेव के सधर्मा थे । परीक्षामुख के कर्ता माणिक्यनन्दि आपके शिक्षा गुरु थे । कृतियें - प्रमेयकमल मार्तण्ड, न्याय कुमुद चन्द्र, तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण, शाकटायन न्यास, शब्दाम्भोज भास्कर, समाधितन्त्र टीका, आत्मानुशासन टीका, समयसार टीका, प्रवचनसार सरोज भास्कर, पञ्चास्तिकाय प्रदीप, लघु-द्रव्यसंग्रह वृत्ति, महापुराण टिप्पणी, गद्य कथाकोष, क्रिया-कलाप टीका और किन्हीं विद्वानों के अनुसार रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका भी . समय - पं. महेन्द्र कुमार के अनुसार वि. 1037-1122; पं. कैलाश चन्द्र जी के अनुसार ई. 950-1020 । (देखें इतिहास - 7.5); (जै/2/348), 1/388); (ती./3/49, 50) ।
- नन्दिसंघ देशीयगण में मेघचन्द्र त्रैविद्य द्वि. के शिष्य और वीरनन्दि व शुभचन्द्र के सहधर्मा । (देखें इतिहास - 7.5) ।
- सेन गण के भट्टारक बाल चन्द्र के शिष्य । कृतियें - सिद्धान्तरसार की कन्नड़ टीका और पं. कैलाश चन्द जी के अनुसार रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका । समय - वि. श. 13 (ई. 1185-1243) ।
- नन्दि संघ बलात्कार गण की अजमेर गद्दी के अनुसार आप रत्न कीर्ति भट्टारक के शिष्य और पद्मनन्दि के शिष्य थे । समय - वि. श. 13 पूर्व अथवा वि. 1310-1385 (ई. 1253-1328) । (देखें इतिहास - 3.4) । (देखें इतिहास - 7.3) ।
- श्रुत मुनि (ई. 1341, वि. 1398) के शिक्षा गुरु । समय - वि. श. 14 का उत्तरार्ध (ई. शु. 14 पूर्व)। (जै./2/195/349) ।
- काष्ठासंघी आचार्य । गुरु परम्परा - हेमकीर्ति, धर्मचन्द्र, प्रभाचन्द्र, । कृति -तत्त्वार्थ रत्न प्रभाकर । समय - वि. 1489 (ई. 1432) । (ज. /2/369-370)
- नन्दिसंघ बलात्कार गण दिल्ली शाखा जो पीछे चित्तौड़ शाखा के रूप में रूपान्तरित हो गई । गुरु - जिनचन्द्र । समय - व. 1571-1586 (ई. 1514-1529) । ती./3/384) ।