उपशांत कषाय: Difference between revisions
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[[पंचसंग्रह प्राकृत| पंचसंग्रह]] / प्राकृत अधिकार संख्या १/२४ कसयाहलं जलं वा सरए सरवाणियं व णिम्मलयं। सयलोवसंतमोहो उपसंतकसाय होइ ।२४।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[पंचसंग्रह प्राकृत| पंचसंग्रह]] / प्राकृत अधिकार संख्या १/२४ कसयाहलं जलं वा सरए सरवाणियं व णिम्मलयं। सयलोवसंतमोहो उपसंतकसाय होइ ।२४।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= कतकफलसे सहित जल, अथवा शरद्कालमें सरोवरका पानी जिस प्रकार निर्मल होता है, उसी प्रकार जिसका सम्पूर्ण मोहकर्म सर्वथा उपशान्त हो गया है, ऐसा उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्ती जीव अत्यन्त निर्मल परिणामवाला होता है ।२४।</p> | |||
([[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,१९/गा. १२२/१८९); ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या ६१/१६१); ([[पंचसंग्रह संस्कृत| पंचसंग्रह]] / संस्कृत अधिकार संख्या १/४७)।<br> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ९/१/२२/५९०/१९ सर्वस्योपशमात् उपशान्तकषायः।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= समस्त मोहका उपशम करनेवाला उपशान्त कषाय है।</p> | |||
([[द्रव्यसंग्रह]] / मूल या टीका गाथा संख्या १३/३५/६)<br> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,१९/१८९/१ उपशान्तः कषायो येषां ते उपशान्तकषायाः। वीतो विनष्टो रागो येषां ते वीतरागाः। छद्म ज्ञानदृगावरणे, तत्र तिष्ठन्तीति छद्मस्थाः। वीतरागाश्च ते छद्मस्थाश्च वीतरागछद्मस्थाः। एतेन सरागछद्मस्थनिराकतिरवगन्तव्या। उपशान्तकषायाश्च ते वीतरागछद्मस्थाश्च उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थाः।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= जिनकी कषाय उपशान्त हो गयी है उन्हें उपशान्तकषाय कहते हैं। जिनका राग नष्ट हो गया है उन्हें वीतराग कहते हैं। `छद्म' ज्ञानावरण और दर्शनावरणको कहते हैं, उनमें जो रहते हैं उन्हें छद्मस्थ कहते हैं। जो वीतराग होते हुए भी छद्मस्थ होते है उन्हें वीतराग छद्मस्थ कहते हैं। इसमें आये हुए वीतराग विशेषणसे दशम गुणस्थान तकके सरागछद्मस्थोंका निराकरण समझना चाहिए। जो उपशान्तकषाय होते हुए भी वीतराग छद्मस्थ होते हैं उन्हें उपशान्तकषाय वीतराग छद्मस्थ कहते हैं।</p> | |||
<OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> इस गुणस्थानमें चारित्र औपशमिक होता है और सम्यक्त्व औपशमिक या क्षायिक </LI> </OL> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,१९/१८९/२ एतस्योपशमिताशेषकषायत्वादौपशमिकः, सम्यक्त्वापेक्षया क्षायिक औपशमिको वा गुणः।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= इस गुणस्थानमें सम्पूर्ण कषायें उपशान्त हो जाती हैं, इसलिए (चारित्र मोहकी अपेक्षा) इसमें औपशमिक भाव है। तथा सम्यग्दर्शनकी अपेक्षा औपशमिक और क्षायिक दोनों भाव हैं।</p> | |||
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<p class="SanskritPrakritSentence">[[लब्धिसार]] / [[लब्धिसार जीवतत्त्व प्रदीपिका | जीवतत्त्व प्रदीपिका ]] / मूल या टीका गाथा संख्या ३७३/४६१ ततः क्षुद्रभवग्रहणं विशेषाधिकं। तत उपशान्तकषाय कालो द्विगुणः।"</p> | |||
<p class="HindiSentence">= नपुंसकवेद उपशमावनेके कालसे क्षुद्रभवका काल विशेष अधिक है, सो यहू एक श्वासके अठारहवें भागमात्र है ।३७३। तिस क्षुद्रभवतैं उपशान्तकषायका काल दूना है।</p> | |||
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<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> उपशम व क्षपक श्रेणी - <b>देखे </b>[[श्रेणी]] ३,४ </LI> | |||
<LI> इस गुणस्थानकी पुनः पुनः प्राप्तिकी सीमा - <b>देखे </b>[[संयम]] २ </LI> | |||
<LI> इस गुणस्थानसे गिरने सम्बन्धी - <b>देखे </b>[[श्रेणी]] ४ </LI> | |||
<LI> यहाँ मरण सम्भव है पर देवगतिमें ही उपजै - <b>देखे </b>[[मरण]] ३ </LI> | |||
<LI> इस गुणस्थानमें कर्म प्रकृतियोंके बन्ध उदय सत्त्वादि प्ररूपणाएँ - <b>देखे </b>[[वह वह नाम <]] /LI> | |||
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<LI> इस गुणस्थानमें सम्भव मार्गणास्थान जीवसमास आदि २० प्ररूपणाएँ - <b>देखे </b>[[सत् <]] /LI> | |||
<LI> इस गुणस्थानकी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व सम्बन्धी आठ प्ररूपणाएँ - <b>देखे </b>[[वह वह नाम <]] /LI> </UL> | |||
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Revision as of 07:04, 26 May 2009
पंचसंग्रह / प्राकृत अधिकार संख्या १/२४ कसयाहलं जलं वा सरए सरवाणियं व णिम्मलयं। सयलोवसंतमोहो उपसंतकसाय होइ ।२४।
= कतकफलसे सहित जल, अथवा शरद्कालमें सरोवरका पानी जिस प्रकार निर्मल होता है, उसी प्रकार जिसका सम्पूर्ण मोहकर्म सर्वथा उपशान्त हो गया है, ऐसा उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्ती जीव अत्यन्त निर्मल परिणामवाला होता है ।२४।
(धवला पुस्तक संख्या १/१,१,१९/गा. १२२/१८९); (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / मूल गाथा संख्या ६१/१६१); ( पंचसंग्रह / संस्कृत अधिकार संख्या १/४७)।
राजवार्तिक अध्याय संख्या ९/१/२२/५९०/१९ सर्वस्योपशमात् उपशान्तकषायः।
= समस्त मोहका उपशम करनेवाला उपशान्त कषाय है।
(द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या १३/३५/६)
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,१९/१८९/१ उपशान्तः कषायो येषां ते उपशान्तकषायाः। वीतो विनष्टो रागो येषां ते वीतरागाः। छद्म ज्ञानदृगावरणे, तत्र तिष्ठन्तीति छद्मस्थाः। वीतरागाश्च ते छद्मस्थाश्च वीतरागछद्मस्थाः। एतेन सरागछद्मस्थनिराकतिरवगन्तव्या। उपशान्तकषायाश्च ते वीतरागछद्मस्थाश्च उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थाः।
= जिनकी कषाय उपशान्त हो गयी है उन्हें उपशान्तकषाय कहते हैं। जिनका राग नष्ट हो गया है उन्हें वीतराग कहते हैं। `छद्म' ज्ञानावरण और दर्शनावरणको कहते हैं, उनमें जो रहते हैं उन्हें छद्मस्थ कहते हैं। जो वीतराग होते हुए भी छद्मस्थ होते है उन्हें वीतराग छद्मस्थ कहते हैं। इसमें आये हुए वीतराग विशेषणसे दशम गुणस्थान तकके सरागछद्मस्थोंका निराकरण समझना चाहिए। जो उपशान्तकषाय होते हुए भी वीतराग छद्मस्थ होते हैं उन्हें उपशान्तकषाय वीतराग छद्मस्थ कहते हैं।
- इस गुणस्थानमें चारित्र औपशमिक होता है और सम्यक्त्व औपशमिक या क्षायिक
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,१९/१८९/२ एतस्योपशमिताशेषकषायत्वादौपशमिकः, सम्यक्त्वापेक्षया क्षायिक औपशमिको वा गुणः।
= इस गुणस्थानमें सम्पूर्ण कषायें उपशान्त हो जाती हैं, इसलिए (चारित्र मोहकी अपेक्षा) इसमें औपशमिक भाव है। तथा सम्यग्दर्शनकी अपेक्षा औपशमिक और क्षायिक दोनों भाव हैं।
- उपशान्त कषाय गुणस्थानकी स्थिति
लब्धिसार / जीवतत्त्व प्रदीपिका / मूल या टीका गाथा संख्या ३७३/४६१ ततः क्षुद्रभवग्रहणं विशेषाधिकं। तत उपशान्तकषाय कालो द्विगुणः।"
= नपुंसकवेद उपशमावनेके कालसे क्षुद्रभवका काल विशेष अधिक है, सो यहू एक श्वासके अठारहवें भागमात्र है ।३७३। तिस क्षुद्रभवतैं उपशान्तकषायका काल दूना है।
- अन्य सम्बन्धित विषय
- उपशम व क्षपक श्रेणी - देखे श्रेणी ३,४
- इस गुणस्थानकी पुनः पुनः प्राप्तिकी सीमा - देखे संयम २
- इस गुणस्थानसे गिरने सम्बन्धी - देखे श्रेणी ४
- यहाँ मरण सम्भव है पर देवगतिमें ही उपजै - देखे मरण ३
- इस गुणस्थानमें कर्म प्रकृतियोंके बन्ध उदय सत्त्वादि प्ररूपणाएँ - देखे [[वह वह नाम <]] /LI>
- सभी गुणस्थानोंमें आयके अनुसार ही व्यय होता है - देखे [[मार्गणा <]] /LI>
- इस गुणस्थानमें सम्भव मार्गणास्थान जीवसमास आदि २० प्ररूपणाएँ - देखे [[सत् <]] /LI>
- इस गुणस्थानकी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व सम्बन्धी आठ प्ररूपणाएँ - देखे [[वह वह नाम <]] /LI>