मनोहरी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1"> (1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा पवनवेग की रानी और मनोरमा की जननी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 15.25-27 </span></p> | <p id="1"> (1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा पवनवेग की रानी और मनोरमा की जननी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 15.25-27 </span></p> | ||
<p id="2">(2) हरिवंशी राजा दक्ष और रानी इला की पुत्री और ऐलेय की बहिन । दक्ष ने प्रजा को छलपूर्वक अपनी ओर करके इसे पत्नी बना लिया था । इस कृत्य से दुःखी होकर इसकी माँ पुत्र ऐलेय को लेकर दुर्गम स्थान में चली गयी थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.1-17 </span></p> | <p id="2">(2) हरिवंशी राजा दक्ष और रानी इला की पुत्री और ऐलेय की बहिन । दक्ष ने प्रजा को छलपूर्वक अपनी ओर करके इसे पत्नी बना लिया था । इस कृत्य से दुःखी होकर इसकी माँ पुत्र ऐलेय को लेकर दुर्गम स्थान में चली गयी थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.1-17 </span></p> | ||
<p id="3">(3) | <p id="3">(3) धातकीखंड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र में स्थित विजयार्ध पर्वत को दक्षिणश्रेणी के नित्यालोक नगर के राजा चित्रचूल की रानी । चित्रांगद के सिवाय इसके युगल रूप में गरुडकांत, सेनकांत, गरुडध्वज, गहडवाहन, मणिचूल तथा हिमचूल नामक छ: पुत्र और हुए थे । इसके सातों पुत्र भूतानंद जिनराज के समीप दीक्षित हो गये थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.131-133, 139 </span></p> | ||
Revision as of 16:31, 19 August 2020
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा पवनवेग की रानी और मनोरमा की जननी । हरिवंशपुराण 15.25-27
(2) हरिवंशी राजा दक्ष और रानी इला की पुत्री और ऐलेय की बहिन । दक्ष ने प्रजा को छलपूर्वक अपनी ओर करके इसे पत्नी बना लिया था । इस कृत्य से दुःखी होकर इसकी माँ पुत्र ऐलेय को लेकर दुर्गम स्थान में चली गयी थी । हरिवंशपुराण 17.1-17
(3) धातकीखंड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र में स्थित विजयार्ध पर्वत को दक्षिणश्रेणी के नित्यालोक नगर के राजा चित्रचूल की रानी । चित्रांगद के सिवाय इसके युगल रूप में गरुडकांत, सेनकांत, गरुडध्वज, गहडवाहन, मणिचूल तथा हिमचूल नामक छ: पुत्र और हुए थे । इसके सातों पुत्र भूतानंद जिनराज के समीप दीक्षित हो गये थे । हरिवंशपुराण 33.131-133, 139