एकत्व: Difference between revisions
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आप्त मी. ३४ सत्सामान्यात्तु सर्वैक्यं पृथग्द्रव्यादिभेदतः। भेदाभेदव्यवस्थायामसाधारणहेतुवत् ।३४।< | <p class="SanskritPrakritSentence">आप्त मी. ३४ सत्सामान्यात्तु सर्वैक्यं पृथग्द्रव्यादिभेदतः। भेदाभेदव्यवस्थायामसाधारणहेतुवत् ।३४।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= भेदाभेदकी विवक्षामें असाधारण हेतुके तुल्य सत्सामान्यसे सबकी एकता है और पृथक् पृथक् द्रव्य आदिकके भेद से भेद भी है।</p> | |||
[[समयसार]] / [[ समयसार आत्मख्याति | आत्मख्याति]] परिशिष्ट शक्ति नं. ३१ अनेकपर्यायव्यापकैकद्रव्यमयत्वरूपा एकत्वशक्तिः।<br> | |||
अनेक पर्यायोंमें व्यापक ऐसी एक द्रव्यमयतारूप एकत्व शक्ति है।<br> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तत्त्वप्रदीपिका | तत्त्वप्रदीपिका ]] / गाथा संख्या १०६ तद्भावो ह्येकत्वस्य लक्षणम्।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= तद्भाव एकत्वका लक्षण है।</p> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[आलापपद्धति]] अधिकार संख्या ६ स्वभावानामेकधारत्वादेकस्वभावः।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= अनेक स्वभावोंका एक आधार होनेपर `एक स्वभाव' है।</p> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[वैशेषिक दर्शन]] / अध्याय संख्या ७/२/१ रूपरसगन्धस्पर्शव्यतिरेकादर्थान्तरमेकत्वम्।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= रूप, रस, गन्ध, स्पर्शके व्यतिरेकसे अर्थान्तरभूत एकत्व है।</p> | |||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> परके साथ एकत्व कहनेका अभिप्राय-<b>देखे </b>[[कारक]] २ </LI> | |||
<LI> परमएकत्वके अपर नाम-<b>देखे </b>[[मोक्षमार्ग]] २/५। </LI> </UL> | |||
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Revision as of 01:07, 26 May 2009
आप्त मी. ३४ सत्सामान्यात्तु सर्वैक्यं पृथग्द्रव्यादिभेदतः। भेदाभेदव्यवस्थायामसाधारणहेतुवत् ।३४।
= भेदाभेदकी विवक्षामें असाधारण हेतुके तुल्य सत्सामान्यसे सबकी एकता है और पृथक् पृथक् द्रव्य आदिकके भेद से भेद भी है।
समयसार / आत्मख्याति परिशिष्ट शक्ति नं. ३१ अनेकपर्यायव्यापकैकद्रव्यमयत्वरूपा एकत्वशक्तिः।
अनेक पर्यायोंमें व्यापक ऐसी एक द्रव्यमयतारूप एकत्व शक्ति है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा संख्या १०६ तद्भावो ह्येकत्वस्य लक्षणम्।
= तद्भाव एकत्वका लक्षण है।
आलापपद्धति अधिकार संख्या ६ स्वभावानामेकधारत्वादेकस्वभावः।
= अनेक स्वभावोंका एक आधार होनेपर `एक स्वभाव' है।
वैशेषिक दर्शन / अध्याय संख्या ७/२/१ रूपरसगन्धस्पर्शव्यतिरेकादर्थान्तरमेकत्वम्।
= रूप, रस, गन्ध, स्पर्शके व्यतिरेकसे अर्थान्तरभूत एकत्व है।
- परके साथ एकत्व कहनेका अभिप्राय-देखे कारक २
- परमएकत्वके अपर नाम-देखे मोक्षमार्ग २/५।