महीधर: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर वृषभदेव के अठारहवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12. 58 </span></p> | <p id="1"> (1) तीर्थंकर वृषभदेव के अठारहवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12. 58 </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2">(2) जंबूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गंधर्वपुर के राजा वासव विद्याधर और उसकी रानी प्रभावती देवी का पुत्र । इसने अपने पुत्र महीकंप को राज्य सौंपकर मुनि जगंनंदन से दीक्षा ली थी । यह मरकर व्रत और तप के प्रभाव से प्राणत स्वर्ग का इंद्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 7.28-29, 35-39 </span></p> | ||
<p id="3">(3) पुष्करद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावर्ती देश में धनसंचय नगर का चक्रवर्ती नृप । इसकी रानी | <p id="3">(3) पुष्करद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावर्ती देश में धनसंचय नगर का चक्रवर्ती नृप । इसकी रानी सुंदरी और पुत्र जयसेन था । नरक की वेदनाओं का स्मरण कराकर किसी श्रीधर नामक देव के द्वारा समझाये जाने पर इसने विरक्त होकर यमधर मुनिराज से दीक्षा ली थी । यह कठिन तपश्चरण करके आयु के अंत में समाधिपूर्वक मरा और ब्रह्म स्वर्ग में इंद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 10. 114-118 </span></p> | ||
<p id="4">(4) एक विद्याधर । जयवर्मा ने इस विद्याघर की भोगोपभोग सामग्री को देखकर आगामी भव में उसके समान भोग । की उपलब्धि का निदान किया था । <span class="GRef"> महापुराण 5.209-210 </span></p> | <p id="4">(4) एक विद्याधर । जयवर्मा ने इस विद्याघर की भोगोपभोग सामग्री को देखकर आगामी भव में उसके समान भोग । की उपलब्धि का निदान किया था । <span class="GRef"> महापुराण 5.209-210 </span></p> | ||
<p id="5">(5) सूर्योदय नगर का राजा एक विद्याधर । शक्रधनु की पुत्री | <p id="5">(5) सूर्योदय नगर का राजा एक विद्याधर । शक्रधनु की पुत्री जयचंद्रा इसके फूफा की लड़की थी भूमिगोचरी चक्रवर्ती हरिषेण का विवाह जयचंद्रा से होने पर इसने हरिषेण से युद्ध किया था तथा भयग्रस्त होकर यह युद्ध से भाग गया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 8.362-363, 373-388 </span></p> | ||
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Revision as of 16:32, 19 August 2020
(1) तीर्थंकर वृषभदेव के अठारहवें गणधर । हरिवंशपुराण 12. 58
(2) जंबूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गंधर्वपुर के राजा वासव विद्याधर और उसकी रानी प्रभावती देवी का पुत्र । इसने अपने पुत्र महीकंप को राज्य सौंपकर मुनि जगंनंदन से दीक्षा ली थी । यह मरकर व्रत और तप के प्रभाव से प्राणत स्वर्ग का इंद्र हुआ था । महापुराण 7.28-29, 35-39
(3) पुष्करद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावर्ती देश में धनसंचय नगर का चक्रवर्ती नृप । इसकी रानी सुंदरी और पुत्र जयसेन था । नरक की वेदनाओं का स्मरण कराकर किसी श्रीधर नामक देव के द्वारा समझाये जाने पर इसने विरक्त होकर यमधर मुनिराज से दीक्षा ली थी । यह कठिन तपश्चरण करके आयु के अंत में समाधिपूर्वक मरा और ब्रह्म स्वर्ग में इंद्र हुआ । महापुराण 10. 114-118
(4) एक विद्याधर । जयवर्मा ने इस विद्याघर की भोगोपभोग सामग्री को देखकर आगामी भव में उसके समान भोग । की उपलब्धि का निदान किया था । महापुराण 5.209-210
(5) सूर्योदय नगर का राजा एक विद्याधर । शक्रधनु की पुत्री जयचंद्रा इसके फूफा की लड़की थी भूमिगोचरी चक्रवर्ती हरिषेण का विवाह जयचंद्रा से होने पर इसने हरिषेण से युद्ध किया था तथा भयग्रस्त होकर यह युद्ध से भाग गया था । पद्मपुराण 8.362-363, 373-388