मारीच: Difference between revisions
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पद्मपुराण/78/81-82 –रावण का मन्त्री था। रावण को युद्ध से रोकने के लिए इसने बहुत प्रयत्न किया और रावण की मृत्यु के पश्चात् दीक्षा धारण कर ली। | |||
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Revision as of 19:13, 17 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
पद्मपुराण/78/81-82 –रावण का मन्त्री था। रावण को युद्ध से रोकने के लिए इसने बहुत प्रयत्न किया और रावण की मृत्यु के पश्चात् दीक्षा धारण कर ली।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में सुरेन्द्रकान्तार नगर के राजा मेघवाहन और रानी अनन्तसेना का पुत्र । दूसरे पूर्वभव में यह जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के समीप मधुक वन में भीलों का राजा पुरूरवा नामक भील था । यह भील मद्य-मास-मधु के त्याग का नियम लेकर समाधिपूर्वक मरने से सौधर्म-स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर इस पर्याय में आया था । महापुराण 62.71, 86-89
(2) एक विद्याधर । यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में असुरसंगीत नगर के राजा मय का मंत्री था । इसने मन्दोदरी का विवाह दशानन के साथ करने में राजा मय का समर्थन किया था । मन्दोदरी से उत्पन्न रावण की पुत्री को यहीं मिथिला नगरी के उद्यान के पास एक प्रकट स्थान में छोड़ने गया था । यही रावण की आज्ञा से श्रेष्ठ मणियों से निर्मित हरिणशिशु का रूप बनाकर सीता के सामने गया था, जिसे सीता की इच्छानुसार राम पकड़ने गये थे । इस प्रकार इसकी सहायता से ही रावण सीताहरण कर सका था । पद्मपुराण के अनुसार रावण शम्बूक का वध करनेवाले को मारने आया था । सीता का सौन्दर्य देखकर वह लुभा गया । उसने अवलोकिनी-विद्या से राम-लक्ष्मण और सीता के नाम, कुल आदि जान लिये । शम्बूक का वध हो जाने से खरदूषण और लक्ष्मण को परस्पर युद्धरत देखकर रावण ने सिंहनाद कर बार-बार राम ! राम ! कहा । राम ने इस सिंहनाद को लक्ष्मण द्वारा किया गया जाना और दु:खी हुए । वे सीता को फूलों से ढककर और उसे निर्भय होकर रहने के लिए कहकर तथा जटायु से सीता की रक्षा करने का निवेदन करने के पश्चात् वहाँ से लक्ष्मण को बचाने चले गये । इधर रावण ने जटायु के विरोध करने पर उसके पख काटकर सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर अपहरण किया । इसने रावण से स्त्रीमोह को त्यागने तथा उसके हिताहित होने का विचार करने का आग्रह किया था । राम और रावण के युद्ध में युद्ध के प्रथम दिन ही राम के योद्ध सन्ताप को इसने ही मार गिराया था । रावण की ओर से युद्ध करते समय युद्ध में बन्धनों से आबद्ध होने पर इसने बन्धनों से मुक्त होते ही निर्ग्रन्थ साधु होकर पाणिपात्र से आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी । लक्ष्मण ने इसके बन्धन से मुक्त होने पर इसे पूर्व की भाँति भोगोपभोग करते हुए सानन्द रहने के लिए कहा था किन्तु इसने प्रतिज्ञा भंग न करके भोगों में अपनी अनिच्छा ही प्रकट की थी । अन्त में यह विद्याधर अत्यधिक संवेग से युक्त और कषाय तथा राग भावों से विमुक्त होकर मुनि हो गया था तप के प्रभाव से मरणोपरान्त यह कल्पवासी देव हुआ । महापुराण 68.19-24, 197-199, 204-209, पद्मपुराण 8.16, 44. 59.90, 46.129-130, 60.10, 78.9, 14, 23-26, 30-31, 82, 80.143